आरती के स्वर !
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क्या रोज ही सुबह
आरती के स्वर तुमसे
दुरी बना लेते है;
या उन स्वरों से
तुम बना लेती हो
अक्सर दूरियां ;
कहते है सुबह की
आरती जिसमे हम
भाव भर लेते है;
वो आरती कभी
खाली हाँथ नहीं
लौट कर आती;
क्योंकि सुना है
भगवान् सदैव
सिर्फ और सिर्फ
सच्चे भावों के ही
भूखे होते है;
तो फिर बताओ
क्यों नहीं होती
तुम्हारी वो सुबह
की प्रार्थनाएं पूरी;
आज सच-सच
बता दो तुम मुझे
क्या सच में तुम
करती हो प्रार्थना;
उन सच्चे भावों से
जो मैं अक्सर देखता हु
उमड़ते हुए तुम्हारी इन
नम आँखों में;
मैंने तो ये भी सुना
है भगवान सरलता
में ही बसते है;
तो फिर ये बताओ
तुम मुझे की सच में
हो उतनी ही सरल;
जितनी सहज और
सरल सी तुम बसती
हो मेरे इन एहसासों में;
गर ये सब सच है
तो फिर रोज ही सुबह
आरती के स्वर तुमसे
दुरी क्यों बना लेते है बोलो !
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