तुम्हारे साथ बीते सारे लम्हात !
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ऐसे ही पलों में लगता है मुझे
जैसे ठीक से ही सहेजे है मैंने,
तुम्हारे साथ बीते सारे लम्हात;
जब भी चाहा उन टुकड़ों को
समेट कर रखना मैंने तब
हर वो टुकड़ा चुभ गया;
अंगुली में मेरे और बहने लगा
वो आँखों की कोरों से मेरे;
लेकिन जब भी याद किया
मैंने उन लम्हों को वो लम्हे
आकर मेरे कमरे में जैसे;
थिरकने लगे और कितने ही
कहकहे ठहाके लगाने लगे;
और कितने ही आहटों के साये
मेरे कमरे की खिड़की में आकर
छुप गए जैसे;
लुका-छुपी खेलते-खेलते जाने
किस दिशा से बहने लगी वही
प्रेम की बयार और;
कमरे की छत से बरसने लगे
हरश्रृंगार के फूल और फिर;
ऐसे ही पलों में लगने लगता है
मुझे जैसे ठीक से ही सहेजे है मैंने,
तुम्हारे साथ बीते सारे लम्हात !
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