Wednesday 7 November 2018

उस रोज़ 'दिवाली' होती है !

उस रोज़ 'दिवाली' होती है ! 
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जब मन में हो मौज बहारों की
चमक आये चमकते सितारों की,
जब ख़ुशियों के शुभ घेरे घेरते हों
तन्हाई में भी तेरी यादों के मेले हों,
उर में आनंद की आभा बिखरती है
मन में उजियारे की रोली फैलती है, 

उस रोज़ 'दिवाली' होती है ;

जब प्रेम-प्रीत के दीप जलते हों
सपने सबके जब सच होते हों,
मन में उमड़े मधुरता भावों की
और लहके फ़सलें लाड चावों की,
उत्साह उमंग की आभा होती है;
 
उस रोज़ 'दिवाली' होती है ।

जब प्रेम से प्रीत मिलती हों
दुश्मन भी गले लग जाते हों,
जब किसी से वैर भाव न हो
सब अपने हों कोई ग़ैर न हो,
अपनत्व की आभा फैलती हो; 

उस रोज़ 'दिवाली' होती है ।

जब तन-मन-प्राण सज जाएं
सद्-गुण के बाजे बज जाएं,
महक आये ख़ुशबू ख़ुशियों की
मुस्काएं चंदनिया सुधियों की,
हिय में तृप्ति की आभा फैलती है; 

उस रोज़ 'दिवाली' होती है ।

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !