Thursday, 22 November 2018

शाम खाली हाथ लौट गयी !

शाम खाली हाथ लौट गयी !
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वो तुम्हारे वादे वाली 
शाम कब की आकर,
खाली हाँथ लौट गयी; 

सुनो तुम्हे पता है क्या ?

फिर उसके पीछे-पीछे 
सितारों वाली उजियारी,
रात भी बिन गुनगुनाये 
ही भरे दिल से लौट गयी; 

सुनो तुम्हे पता है क्या ?

फिर एक नयी आस वाली 
भोर आयी जो किसी को बिन, 
कुछ बताये उनमुनि सी लौट गयी; 

सुनो तुम्हे पता है क्या ?

फिर एक नयी दोपहर भी उन 
सब की ही तरह बैरंग लौट गयी 
और उसके ठीक पीछे-पीछे वही 
तुम्हारे वादे वाली शाम आयी;

सुनो तुम्हे पता है क्या ?

काफी देर इधर-उधर अकेली 
टहलती रही और टहलती रही 
फिर थक कर के कुछ देर अपने
घुटनों में सर छुपाये भी बैठी रही;

सुनो तुम्हे पता है क्या ?

काफी देर ढीठ की तरह बैठी रही
पर रात जब उसके सर पर आकर 
खड़ी हो गयी तब बे-मन से कुछ 
मन ही मन बड़बड़ाते हुए लौट गयी !  

सुनो तुम्हे पता है क्या ?

गर ना हो पता तो कर लो पता
मुझे नहीं लगता अब वो शाम फिर
कभी लौट कर आएगी तुम्हारे द्वार !   

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !