मैंने तो सिर्फ प्रेम किया !
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प्रेम तो किया था मैंने तुमसे
अपनी आँख और दिमाग
दोनों बंद कर के;
जबकि कई बार मेरी
इन्द्रियों होकर सक्रिय
जताती रही विरोध;
तभी तो करता रहा मैं
नज़रअंदाज़ विरोध
अपनी ही इन्द्रियों का;
क्योंकि मैंने तो पढ़ा था
प्रेम में कभी तार्किक नहीं
हुआ जाता;
और मैं कभी हुआ भी नहीं
परन्तु तुमने तो कभी कोई
बात मेरी मानी ही नहीं;
जब-तक की तुमने उस बात
को आज़माया नहीं क्योंकि
तार्किक हो तुम;
पर क्या तुमने कभी पढ़ा नहीं
या सुना भी नहीं की प्रेम में कभी
किसी तरह के तर्क की कोई जगह
नहीं होती;
इसलिए मैंने अपने हिस्से का
प्रेम किया और तुमने अपने
हिस्से का तर्क;
प्रेम तो किया था मैंने तुमसे
अपनी आँख और दिमाग
दोनों बंद कर के !
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