Friday, 5 May 2017

अच्छा नहीं लगता....









एक तुम्हारे बिना
मुझे अब कुछ भी
अच्छा नहीं लगता....
आँखों में कोई 
भी लम्हा ढंग से 
ठहर नहीं पाता,
कोई गीत सुनना 
चाहता हूँ तो सुर 
इधर के उधर
लगने लगते हैं....
कुछ लिखने बैठता हूँ तो
शब्द ठहरते ही 
नहीं कागज पर...
ये कोरा कागज मुझे
टुकुर-टुकुर 
ताकने लगता है....

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !