Saturday, 24 June 2017

धागे गिरहे लगाने को

लेता नहीं मैं कभी
धागे कच्चे लगाने को गिरहे ,
होती है जब भी टूटन
खोता नहीं मैं
आपा अपना,
बंटकर करता हूँ
फिर से उन्हें एक सा
टूटे हुए सिरों को
लगाकर पानी थोड़ा
घुमा फिरा कर
थोड़ा,
लगाता हूँ
फिर गिरह 
एक मज़बूत सी,
काट देता हूँ फिर
वो हिस्सा...

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !