कितनी बार और
किस -किस तरह बताऊँ तुम्हें
कितना इंतजार करता हूँ
तुम्हारा और
एक तुम हो कि
अपना चेहरा दिखला कर
फिर से गुम हो जाती हो ...
सोचा था अब नहीं जाने दूंगा
तुम्हे यु रोज की तरह
पर तुम तो चंद्रमाँ की
बढती कलाओं
की तरह आयी और
घटती कलाओं की
तरह चली गयी ...
छोड़ गए बस यादों
और इंतजार की
काली अमावस की रात ,
अब फिर से तुम्हारे
आने का इंतज़ार है
शायद अब ना जाने दू
तुम्हे फिर से
किस -किस तरह बताऊँ तुम्हें
कितना इंतजार करता हूँ
तुम्हारा और
एक तुम हो कि
अपना चेहरा दिखला कर
फिर से गुम हो जाती हो ...
सोचा था अब नहीं जाने दूंगा
तुम्हे यु रोज की तरह
पर तुम तो चंद्रमाँ की
बढती कलाओं
की तरह आयी और
घटती कलाओं की
तरह चली गयी ...
छोड़ गए बस यादों
और इंतजार की
काली अमावस की रात ,
अब फिर से तुम्हारे
आने का इंतज़ार है
शायद अब ना जाने दू
तुम्हे फिर से
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