वो चाँद की रात,
और वो तुम्हारी बाते...
तुम कुछ भी कह रही और
मैं लिख रहा था ,
तुम को शब्दों में
बांध रहा था ..
और तुम नाराज भी
हो रही थी कि,
क्यों लिख रहा हूँ मैं...
मैं हर बार कहता कि,
तुम्हे अपने पास
संजो कर रख रहा हूँ...
और हसँ कर कह देती कि,
तुम बिलकुल पागल हो....
और मैं भी मान लेता की,
हाँ मैं पागल ही सही...
वो ही तो पागल था
जिसने मुझे कभी
तुमसे अलग नहीं होने दिया
और वो तुम्हारी बाते...
तुम कुछ भी कह रही और
मैं लिख रहा था ,
तुम को शब्दों में
बांध रहा था ..
और तुम नाराज भी
हो रही थी कि,
क्यों लिख रहा हूँ मैं...
मैं हर बार कहता कि,
तुम्हे अपने पास
संजो कर रख रहा हूँ...
और हसँ कर कह देती कि,
तुम बिलकुल पागल हो....
और मैं भी मान लेता की,
हाँ मैं पागल ही सही...
वो ही तो पागल था
जिसने मुझे कभी
तुमसे अलग नहीं होने दिया
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