Thursday, 22 June 2017

अनुभव कर लेती है

मैं जानना चाहता हूँ तुम्हें
जैसे
बीज सूँघ लेते हैं 
ऋतुओं की गंध
और पृथ्वी जान लेती है 
बीज की अकुलाहट
मैं जानना चाहता हूँ तुम्हें
जैसे स्त्री अनुभव कर लेती है
भ्रूण के शिशु होने का स्पंदन
जैसे आत्मा जान लेती है 
अपने देह की जरूरत
और देह जानती है 
आत्मा का सुख
मैं जानना चाहता हूँ तुम्हें
ऐसे

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !