तुम भी चाँद की उस
चांदनी तरह ही तो हो
ना मालूम मैं चाँद
की राह ताकता हूँ या
तुम्हारी राह ताकता हूँ
चंद्रमा की बढती-घटती
कलाओं के साथ मैं भी
घटता बढ़ता रहता हु
आशा -निराशा के भंवर में ,
फिर भी निहारता रहता हूँ
उस राह को की तुम
कभी ना कभी तो आओगी ...
चाँद के फिर से आने का वक़्त
तो निर्धारित है की वो
अमावस के बाद आता है
और तुम्हारा समय क्या है
कभी तो बताओ मुझे ?
चांदनी तरह ही तो हो
ना मालूम मैं चाँद
की राह ताकता हूँ या
तुम्हारी राह ताकता हूँ
चंद्रमा की बढती-घटती
कलाओं के साथ मैं भी
घटता बढ़ता रहता हु
आशा -निराशा के भंवर में ,
फिर भी निहारता रहता हूँ
उस राह को की तुम
कभी ना कभी तो आओगी ...
चाँद के फिर से आने का वक़्त
तो निर्धारित है की वो
अमावस के बाद आता है
और तुम्हारा समय क्या है
कभी तो बताओ मुझे ?
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