Monday, 12 June 2017

कभी तो बताओ मुझे

तुम भी चाँद की उस 
चांदनी तरह ही तो हो
ना मालूम मैं चाँद 
की राह ताकता हूँ या
तुम्हारी  राह ताकता हूँ
चंद्रमा  की बढती-घटती  
कलाओं के साथ मैं भी 
घटता बढ़ता रहता हु 
आशा -निराशा के भंवर में  ,
फिर भी निहारता रहता हूँ
उस राह को की तुम 
कभी ना कभी तो आओगी ...
चाँद के फिर से आने का वक़्त
तो निर्धारित है की वो 
अमावस के बाद आता है
और तुम्हारा समय क्या है 
कभी तो बताओ मुझे ?

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !