Tuesday, 13 June 2017

ये आहटें जानी पहचानी

ये आहट पहचानी सी ,
होती है कुछ अपनी सी
देख  नहीं पाता
मुड़ -मूडकर देखने 
के बाद भी 
नहीं दिखती वो 
परछाई मुझे 
जीता रहता  हूँ
बस इसी सोच में कि
ये आहटें मेरी 
अपनी जानी पहचानी है
नहीं मालूम मुझे
सच में जानी पहचानी 
भी है या ये है सिर्फ 
मेरा अति विस्वास 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !