Thursday, 22 June 2017

मैं उपस्थित हूँ


सुबह के कोहरे की 
रोशनी में
छुप जाती है 
मेरी पहचान की आकृति
लेकिन खून की लकीर है
मेरी हथेली में
चिड़ियों की चोंच से 
चिड़ियों की गुहार में
मैं उपस्थित हूँ
यदि तुम
कम-से-कम
मुझे सुनने की 
कोशि‍श करो
तो तुम्हे मिलूंगा 
रोज ही यु दाने लिए 
चिड़ियों के लिए
तुम भी तो मेरी ही 
चिडया हो ना
फिर तुम किन्यु नहीं 
आती यु रोज मेरी 
हथेलियों से दाने चुगने 
बोलो

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !