सुबह के कोहरे की
रोशनी में
छुप जाती है
मेरी पहचान की आकृति
लेकिन खून की लकीर है
मेरी हथेली में
चिड़ियों की चोंच से
चिड़ियों की गुहार में
मैं उपस्थित हूँ
यदि तुम
कम-से-कम
मुझे सुनने की
कोशिश करो
तो तुम्हे मिलूंगा
रोज ही यु दाने लिए
चिड़ियों के लिए
तुम भी तो मेरी ही
चिडया हो ना
फिर तुम किन्यु नहीं
आती यु रोज मेरी
हथेलियों से दाने चुगने
बोलो
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