Monday, 19 June 2017

तुम जीत हो

ओ मेरे प्रेम....
तुम जीत हो
लेकिन
हारा हु मैं 
तुम्हें पाने
की चाहत में...
फिर
मैं क्यों कर जीत पाता  ...
प्रेम
जहाँ तुम
वही मेरा डेरा
तुम्हारे कदमों
को पहचान
चला आता  हूँ...
ढूंढ ही लेता हूँ
तुम्हें
साथ है सदा का,
जैसे परछाई...
क्योंकि प्रेम
तुम प्रकाश हो
मेरा अंधकार नहीं....⁠⁠⁠⁠

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !