Monday, 19 June 2017

प्रेम का अर्थ



मैंने लिखा प्रेम 
तुमने लिखा दुरी , 
प्रेम ,
तुम्हारा नाम
दुरी  है क्या !
चल पड़ती हो 
यूँ मुँह फेर के ,
पीठ घुमा कर
एक बार भी
मेरी पुकार
क्या तुम
सुनोगी नहीं !
क्यूंकि
प्रेम का अर्थ
दुरी नहीं है।
केवल
प्रेम ही है,
मनुहार भी है।
लेकिन मनुहार
क्यों ,किसलिए
तुम दूर हो तुम मुझसे 
प्रेम तुम सिर्फ और
सिर्फ मेरी ज़िन्दगी हो  ,
मृत्यु नहीं !
इसलिए आओ पास
और देखो प्रेम का
अर्थ दुरी नहीं 
प्रेम है सिर्फ प्रेम⁠⁠⁠⁠

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !