Wednesday, 14 June 2017

देख सकु तुम्हे सकूँ से ....

चाहत है मेरी 
एक छोटे से घर की
जिसकी दीवारें 
बिलकुल ऊँची न हो
ताकि हवाएँ बिना 
रोक-टोक  .....
इधर से उधर
......जा सकें
और मैं तुम्हे
उन खुली.....
हवा में साँस
लेता सकूँ से ....
देख सकु नाचते 
गाते किलोल करते 
बस ज़िन्दगी भर यु ही                        
बिलकुल मेरी आँखों के सामने

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !