Saturday, 17 June 2017

मुझे बांधती रहो 

तुम इतना 
आहिस्ते-आहिस्ते
मुझे बाँधती हो  ....
जैसे तुम कोई 
इस्तरी हो और 
मैं कोई भीगी 
सलवटों भरी कमीज  ....
तुम आहिस्ते-आहिस्ते 
मुझे दबाती सहला रही हो
और मुझमे से जैसे 
भाप उठ रही है   ....
और सलवटें खुल-खुल रही हैं
यु ही आहिस्ते-आहिस्ते
मुझे बांधती रहो 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !