Friday, 2 June 2017

कब तक रहोगी दूर ?

कब तक रहोगी दूर ?
अब तो आ जाओ तुम
पास मेरे मेरी हकीकत बनकर
कब तक रहोगी दूर तुम?
मुझसे सितारों की तरह
अब तो बहो हवाओं की तरह
मेरे आंगन में आकर
कब तक रहोगी तुम ?
मेरी पलकों में यही
नमी की तरह
कभी तो छलको आकर
मुझपर रेशमी बूंदें बनकर
कब तक रहोगी दूर ?
मेरे सवालों की तरह
अब तो आ जाओ पास
मेरे सुलझे जवाबो की तरह   

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !