अकेलेपन की जंजीरों
में अक्सर जकड़ा
मेरा समूचा अस्तित्व
तुमसे बांधकर सबसे
मुक्त होने की आसा
पर जीता हर लम्हा
और चाहता हु मैं
ना हो कभी ऐसा
की तुम्हारा एहम
चट्टान सा की जिससे
टकराकर बिखर जाऊं
मैं असंख्य बूंदो में
वरन तुम हो एक नदी सी
अंगीकार कर ले मुझे
अपने अस्तित्व में
मुझे अकेले उठते गिरते
खुद में ही और कर दे
मुझे सदा के लिए
बंधन युक्त खुद से
में अक्सर जकड़ा
मेरा समूचा अस्तित्व
तुमसे बांधकर सबसे
मुक्त होने की आसा
पर जीता हर लम्हा
और चाहता हु मैं
ना हो कभी ऐसा
की तुम्हारा एहम
चट्टान सा की जिससे
टकराकर बिखर जाऊं
मैं असंख्य बूंदो में
वरन तुम हो एक नदी सी
अंगीकार कर ले मुझे
अपने अस्तित्व में
मुझे अकेले उठते गिरते
खुद में ही और कर दे
मुझे सदा के लिए
बंधन युक्त खुद से
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