Friday, 9 June 2017

मैं तुम्हे निहारता रहता हु 




फिर एक बार 
सुबह को ढूंढता हु 
ओस की बूंदों पर,
तुम्हारा ही अक्स नज़र
आता है मुझे
झिलमिलाती सतरंगी
किरणों में भी
तुम नजर आती हो मुझे
और मैं तुम्हे
निहारता रहता हु
जब तक तुम मेरी
आँखों में मेरा वज़ूद
बनकर ना समां जाती हो 





No comments:

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !