Saturday, 10 June 2017

आस क्यूँ नहीं टूटी


ना जाने और अभी 
कितने पल
कितने दिन
कितने बरस
कितने युग
शायद सदियां भी
तेरे इंतज़ार में मुझे 
अभी भी काटनी है
धुंधलाने लगी है
नज़रे मेरी अब ,
लेकिन
ना जाने ये आस क्यूँ नहीं
टूटी मेरी अब तक
की तुम आओगी 
एक ना एक दिन 
मेरे पास मेरी होकर
मेरे साथ मेरी होकर
रहने सदा के लिए 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !