Friday, 30 June 2017
एक सम्पूर्ण अभिव्यक्ति
भावनाए जब बहती है
मन में...
समेटे खुद में ढेरो ज़ज़्बात
उढेल देना चाहती है
किसी ऐसे पर जो हो
सिर्फ उसका जिसे फिक्र हो
सिर्फ उसकी और फिर
भावनाएं उतर कर अपनी
लज़्ज़ा का चोला न्योछावर
करती है अपना सबकुछ
उसको और समेत लेती है उसे
अपने आलिंगन में तब वो
हो जाती है एक सम्पूर्ण
अभिव्यक्ति
भावनाए जब बहती है
मन में...
मन में...
समेटे खुद में ढेरो ज़ज़्बात
उढेल देना चाहती है
किसी ऐसे पर जो हो
सिर्फ उसका जिसे फिक्र हो
सिर्फ उसकी और फिर
भावनाएं उतर कर अपनी
लज़्ज़ा का चोला न्योछावर
करती है अपना सबकुछ
उसको और समेत लेती है उसे
अपने आलिंगन में तब वो
हो जाती है एक सम्पूर्ण
अभिव्यक्ति
भावनाए जब बहती है
मन में...
कभी-कभी बन आंसू
भावनाए बहती है
मन में....
सब कुछ ही तो
कह देना चाहती है....
पर कई बार वो
खो जाती है मन सागर में
किसी लहर की के निचे
दबकर ज्यूँ कोई अनजान
भंवर लीन लेता है खुद में ,
कई चीज़ो को लहरों के संग
वैसे ही भावनाएं मन में उठती है
और मन ही में मर जाती है...
या कभी-कभी तो बन आंसू
खुद अपनी मौत बन जाती है...
कभी कोई अधूरा चित्र बन
अपनी लाचारी कहती है...
या कभी-कभी पाकर
कलम का सहारा कविता
बन जाती है...
जब भावनाए बहती है
मन में....
मन में....
सब कुछ ही तो
कह देना चाहती है....
पर कई बार वो
खो जाती है मन सागर में
किसी लहर की के निचे
दबकर ज्यूँ कोई अनजान
भंवर लीन लेता है खुद में ,
कई चीज़ो को लहरों के संग
वैसे ही भावनाएं मन में उठती है
और मन ही में मर जाती है...
या कभी-कभी तो बन आंसू
खुद अपनी मौत बन जाती है...
कभी कोई अधूरा चित्र बन
अपनी लाचारी कहती है...
या कभी-कभी पाकर
कलम का सहारा कविता
बन जाती है...
जब भावनाए बहती है
मन में....
मुझ से तुम हो
वेश बदल कर
भी मिलोगे तो
भी आहटें पहचान
लुंगी ..
लब सिल कर रखोगे
लेकिन नज़रों
का बोलना ना
छुपा पाओगे ...
चलते -चलते राह
बदल दोगे पर
ये पगडंडियाँ ना
छोड़ पाओगे ...
मिलोगे भी नहीं
बात भी नहीं करोगे
पर मेरे सपनो में
आना कैसे
छोड़ पाओगे तुम ...
तुम से मैं हूँ
मुझ से तुम हो
हर बात मुझसे जुडी है
तुम मुझसे ना
छुपा पाओगे ...
Thursday, 29 June 2017
भूरी-भूरी आंखे
दो भूरी-भूरी आंखे
झपकाते हुए ,
मैं अक्सर
तुम्हारी तस्वीर में
अपनी खुसी खोजता हूँ ...
वो खुसी जो कभी
मैंने तुम्हें दी थी ,
तुम्हारा हाथ थामकर
तुम्हारी सागर की सी
गहराई लिए दो आँखों ,
को एक टक देखते हुए ...
कहा था सदा यु ही
एक टक देखते रहना
चाहता हु मैं तुम्हारी इन
दो काली काली आँखों में
दो भूरी-भूरी आंखे
झपकाते हुए ,
मैं अक्सर
तुम्हारी तस्वीर में
अपनी खुसी खोजता हूँ ...
झपकाते हुए ,
मैं अक्सर
तुम्हारी तस्वीर में
अपनी खुसी खोजता हूँ ...
वो खुसी जो कभी
मैंने तुम्हें दी थी ,
तुम्हारा हाथ थामकर
तुम्हारी सागर की सी
गहराई लिए दो आँखों ,
को एक टक देखते हुए ...
कहा था सदा यु ही
एक टक देखते रहना
चाहता हु मैं तुम्हारी इन
दो काली काली आँखों में
दो भूरी-भूरी आंखे
झपकाते हुए ,
मैं अक्सर
तुम्हारी तस्वीर में
अपनी खुसी खोजता हूँ ...
Tuesday, 27 June 2017
तुम्हारे आने का इशारा था ....!
चुप-चाप सी
चल रही थी
मेरी जिन्दगी ,
एक ठहरी हुयी
नदी सी ..
ना सुबह के
होने की थी कोई
उमंग ही , ना ही
शाम होने की
ललक ही थी ,
दिन चल रहे थे
और रातें रुकी
हुई सी थी .. सहसा
ये क्या हुआ था ,
मेरे मन में ये कैसी
हिलोर उठी थी
शांत लहरों पर
रुकी हुई मेरी
ज़िन्दगी की
पतवार किसने
थाम ली ...!
क्या यह तुम्हारे आने
का इशारा था ....!
Monday, 26 June 2017
तुम्हारी आँखों के ख्वाब...
सुनो आओ...
कुछ देर मेरे पास बैठो,
मैं लौटा दूंगी
तुम्हारा खोया हुआ,
विश्वास...
कुछ देर बैठो...
मेरे हाथों को थाम कर,
मैं लौटा दूंगी तुम्हे
जीने का एहसास...
कुछ देर देखो...
तुम मेरी आँखों में,
मैं लौटा दूंगी...
तुम्हारी आँखों के ख्वाब...
कुछ देर सुन लो,
तुम इन धड़कनो की आवाज़,
तुम्हे मिल जायँगे,
सवालो के जवाब
पर मैं तो बैठा हु
तुम्हारे हांथो के थामे
पिछले पांच सालो से
देखे हुए तुम्हारी ही
आँखों में जंहा रखे थे
मैंने अपने ख्वाब जो
अब तक है अधूरे
कुछ देर मेरे पास बैठो,
मैं लौटा दूंगी
तुम्हारा खोया हुआ,
विश्वास...
कुछ देर बैठो...
मेरे हाथों को थाम कर,
मैं लौटा दूंगी तुम्हे
जीने का एहसास...
कुछ देर देखो...
तुम मेरी आँखों में,
मैं लौटा दूंगी...
तुम्हारी आँखों के ख्वाब...
कुछ देर सुन लो,
तुम इन धड़कनो की आवाज़,
तुम्हे मिल जायँगे,
सवालो के जवाब
पर मैं तो बैठा हु
तुम्हारे हांथो के थामे
पिछले पांच सालो से
देखे हुए तुम्हारी ही
आँखों में जंहा रखे थे
मैंने अपने ख्वाब जो
अब तक है अधूरे
काली अमावस की रात
कितनी बार और
किस -किस तरह बताऊँ तुम्हें
कितना इंतजार करता हूँ
तुम्हारा और
एक तुम हो कि
अपना चेहरा दिखला कर
फिर से गुम हो जाती हो ...
सोचा था अब नहीं जाने दूंगा
तुम्हे यु रोज की तरह
पर तुम तो चंद्रमाँ की
बढती कलाओं
की तरह आयी और
घटती कलाओं की
तरह चली गयी ...
छोड़ गए बस यादों
और इंतजार की
काली अमावस की रात ,
अब फिर से तुम्हारे
आने का इंतज़ार है
शायद अब ना जाने दू
तुम्हे फिर से
किस -किस तरह बताऊँ तुम्हें
कितना इंतजार करता हूँ
तुम्हारा और
एक तुम हो कि
अपना चेहरा दिखला कर
फिर से गुम हो जाती हो ...
सोचा था अब नहीं जाने दूंगा
तुम्हे यु रोज की तरह
पर तुम तो चंद्रमाँ की
बढती कलाओं
की तरह आयी और
घटती कलाओं की
तरह चली गयी ...
छोड़ गए बस यादों
और इंतजार की
काली अमावस की रात ,
अब फिर से तुम्हारे
आने का इंतज़ार है
शायद अब ना जाने दू
तुम्हे फिर से
Saturday, 24 June 2017
तुम बिलकुल पागल हो....
वो चाँद की रात,
और वो तुम्हारी बाते...
तुम कुछ भी कह रही और
मैं लिख रहा था ,
तुम को शब्दों में
बांध रहा था ..
और तुम नाराज भी
हो रही थी कि,
क्यों लिख रहा हूँ मैं...
मैं हर बार कहता कि,
तुम्हे अपने पास
संजो कर रख रहा हूँ...
और हसँ कर कह देती कि,
तुम बिलकुल पागल हो....
और मैं भी मान लेता की,
हाँ मैं पागल ही सही...
वो ही तो पागल था
जिसने मुझे कभी
तुमसे अलग नहीं होने दिया
और वो तुम्हारी बाते...
तुम कुछ भी कह रही और
मैं लिख रहा था ,
तुम को शब्दों में
बांध रहा था ..
और तुम नाराज भी
हो रही थी कि,
क्यों लिख रहा हूँ मैं...
मैं हर बार कहता कि,
तुम्हे अपने पास
संजो कर रख रहा हूँ...
और हसँ कर कह देती कि,
तुम बिलकुल पागल हो....
और मैं भी मान लेता की,
हाँ मैं पागल ही सही...
वो ही तो पागल था
जिसने मुझे कभी
तुमसे अलग नहीं होने दिया
Friday, 23 June 2017
तुम मेरे पास आना
बारिश की इन
बूंदों के साथ,
हम-तुम खेले है...
इन बूंदों के लिये ही,
मिले और बिछड़े है...
तुम्हारी जिद इन
बूंदों को पकड़ लेने की,
मेरी जिद इन बूंदों में
साथ तुम्हारे भीग जाने की...
ख्वाइशें फिर चाहे अलग हो,
बारिश की बूंदों के साथ,
खेलने की चाह इक थी....
ठीक वैसे ही जैसे
तुम मेरे पास आना
चाहती हो पर किसी का
दिल दुखाये बगैर और
मैंने ठान रखा है नहीं
जीना तेरे बगैर चाहे
ख़ुदा को करना पड़े नाराज़
बूंदों के साथ,
हम-तुम खेले है...
इन बूंदों के लिये ही,
मिले और बिछड़े है...
तुम्हारी जिद इन
बूंदों को पकड़ लेने की,
मेरी जिद इन बूंदों में
साथ तुम्हारे भीग जाने की...
ख्वाइशें फिर चाहे अलग हो,
बारिश की बूंदों के साथ,
खेलने की चाह इक थी....
ठीक वैसे ही जैसे
तुम मेरे पास आना
चाहती हो पर किसी का
दिल दुखाये बगैर और
मैंने ठान रखा है नहीं
जीना तेरे बगैर चाहे
ख़ुदा को करना पड़े नाराज़
साथ साथ चलने के लिए...
हम तुम जो यु
साथ साथ चल रहे हैं
एक दूसरे का हाथ,
हाथ में लिए
सुनसान राहों पर
मैं देखता हूँ,
सूरज को तुम्हारी
आँखों में ढलते हुए...
मैं इसे अपनी आँखों में
समां कर रखूँगा रात भर...
सुंदर सपनों की तरह
सुबह फिर से
निकलेगा यह सूरज
हम फिर निकल
पड़ेंगे साथ साथ
कभी ना खत्म होने वाली
लंबी राहों पर
साथ साथ चलने के लिए...
उम्र भर यु ही
थामे तुम्हारा हाथ
मेरे पीछे-पीछे
स्मृतियों में ले जाता आया
हु मैं तुम्हे आज तक
अपने घर इस
विस्वास के साथ की
एक दिन तुम खुद
आओगी मेरे पीछे-पीछे
वही चमक अपनी
आँखों में लिए जिनसे
तुमने दिया था मुझे
पुर्नजन्म और अपनी
मुस्कराहट को सहेजने
मेरी ऊपर निचे होती
सांसो में और मुझे मानोगी
इस काबिल की मैं
तुम्हारे अपनेपन के
अंतरग स्पर्श के चिन्हो
को तरुणाई के साथ
रख सकूंगा सदा सदा
के लिए अपनी दहलीज़
ही नहीं बल्कि हृदय
के अंदर
हु मैं तुम्हे आज तक
अपने घर इस
विस्वास के साथ की
एक दिन तुम खुद
आओगी मेरे पीछे-पीछे
वही चमक अपनी
आँखों में लिए जिनसे
तुमने दिया था मुझे
पुर्नजन्म और अपनी
मुस्कराहट को सहेजने
मेरी ऊपर निचे होती
सांसो में और मुझे मानोगी
इस काबिल की मैं
तुम्हारे अपनेपन के
अंतरग स्पर्श के चिन्हो
को तरुणाई के साथ
रख सकूंगा सदा सदा
के लिए अपनी दहलीज़
ही नहीं बल्कि हृदय
के अंदर
मैं तुम्हें घर ले जाता हूँ
वह ! तुम ही थी
साँसों में चमक के लिए
गहराई से मुझे
पुनर्जन्म देनेवाली
तुम्हारी मुस्कुराहट
की खुसबू
मुझे तुम तक
समेटती-सहेजती है
मैं तुम्हें घर ले जाता हूँ
अपनी स्मृतियों और
विचारों की
झोली में भरकर
रोज रोज किंयूंकि शायद
तुम्हारी नजरो में अभी
मैं इस काबिल नहीं कि
तुम्हारे अपनेपन के अंतरंग
स्पर्श के चिह्नों को
तरुणाई के साथ
अपनी दहलीज़ के अंदर
ले जा सकु
Thursday, 22 June 2017
मैं उपस्थित हूँ
सुबह के कोहरे की
रोशनी में
छुप जाती है
मेरी पहचान की आकृति
लेकिन खून की लकीर है
मेरी हथेली में
चिड़ियों की चोंच से
चिड़ियों की गुहार में
मैं उपस्थित हूँ
यदि तुम
कम-से-कम
मुझे सुनने की
कोशिश करो
तो तुम्हे मिलूंगा
रोज ही यु दाने लिए
चिड़ियों के लिए
तुम भी तो मेरी ही
चिडया हो ना
फिर तुम किन्यु नहीं
आती यु रोज मेरी
हथेलियों से दाने चुगने
बोलो
नाजुक कहकहे
खिलते हुए तुम्हारे,
गुलाबी होठो से आते हुए
नाजुक कहकहे की साँसें
हिलाती है मुझे
सूर्य और हवा
झर आए मुझ तक
दूर की आवाज
अब कितना नजदीक लगती है
मेरे बगल में खड़ी
लेकिन मेरी हर छाया से बेखबर
वह कोमलतम
उत्तेजित और सघन
जल हवा रोशनी
बदलती है तुम्हारी तरह
जैसे बदलता मैं
हम हरेक की चेतना में
जगाएँगे ये शब्द-
कि झूठ और असत्य को
ललकारेंगे हम
सबके बीच में रह कर
यही स्वप्न तो देखता
आया हु मैं कब से
Wednesday, 21 June 2017
मैं जानना चाहता हूँ तुम्हें
मैं जानना चाहता हूँ तुम्हें
जैसे
फूल जानता है गंध को
मैं जानना चाहता हूँ तुम्हें
जैसे
पानी जानता है स्वाद को
मैं जानना चाहता हूँ तुम्हें
जैसे
धरती जानती है जल पीना
मैं जानना चाहता हूँ तुम्हें
जैसे
बीज जानता है अपने फल को ,
मैं जानना चाहता हूँ तुम्हें
जैसे
हवाएँ पहचानती हैं
मानसूनी बादल को
जैसे बादल जानते हैं
धरती की प्यास को
मैं जानना चाहता हूँ तुम्हें
जैसे
शब्द जानते हैं अपने अर्थ
तुम्हारी हथेलियों की तपन
मैं अब अपनी
चेतना को उतारकर
रद्द हो चुके कपड़ों की तरह
फेंक देना चाहता हूँ
इन दिनों वही
करना चाहता हूँ
जैसा तुम कहती जाओ
तुम्हारी हथेलियों की
तपन को
फैलाकर अपनी नस नस में
पकड़कर उँगली तुम्हारी
चलते जाना चाहता हूँ
शहर के आखिरी
छोर वाले घर तक
आज, अँधेरा घिर आने की
परवाह किए बगैर
वो सब्द सुनने को
बेक़रार मैं कर रहा हु
आज भी इंतज़ार
तुम्हारा
समय के उस पार
ओ प्रेमा
मैं चाहता हूँ
तुम्हारे सुख-दुख बाँटना
तुम्हारे सपनों की
दुनिया से परिचित होना
जाना चाहता हूँ तुम्हारे साथ
समय के उस आयाम में
जहाँ तुम अकेले
अब तक, अकेले ही
जाती रही जबकि
मैंने हमेशा वो ही
सुख-दुःख अपनाये है
जो तुझे छूकर आये है
पर किन्यु तुम हमेशा
अकेले ही चली जाती हो
समय के उस पार
अकेले ही बोलो
मैं चाहता हूँ
तुम्हारे सुख-दुख बाँटना
तुम्हारे सपनों की
दुनिया से परिचित होना
जाना चाहता हूँ तुम्हारे साथ
समय के उस आयाम में
जहाँ तुम अकेले
अब तक, अकेले ही
जाती रही जबकि
मैंने हमेशा वो ही
सुख-दुःख अपनाये है
जो तुझे छूकर आये है
पर किन्यु तुम हमेशा
अकेले ही चली जाती हो
समय के उस पार
अकेले ही बोलो
Tuesday, 20 June 2017
फिर ऐसा किन्यु है
मैंने सूना है ...
एक से नहीं रहते हालात
एक से नहीं रहते ताल्लुकात
एक से नहीं रहते सारे
सवालात और जवाबात
एक से नहीं रहते तजुर्बात
एक से नहीं रहते दिन-रात
एक से नहीं रहते ये कायनात
खुदा के सिवा एक सा कोई नहीं रहता
तो फिर ऐसा किन्यु है
की मैं आज भी वैसे ही प्यासा हु
जैसा उस दिन था जब देखा था
मैंने तुम्हे पहली बार
तो फिर ऐसा किन्यु है
आज भी दो घडी जो तुम
नहीं दिखती मुझे तो मन
मेरा बैचैन हो उठता है
तो फिर ऐसा किन्यु है
की आज भी एक दिन तुम
ना मिलो तो वो दिन जैसे
गुजरता ही नहीं
तुम ही बताओ किन्यु हु मैं
आज भी वैसा ही तुम्हारे लिए
जैसा मैं था उस दिन
जिस दिन मैं मिला था तुम्हे
पहली बार
Monday, 19 June 2017
प्रेम का अर्थ
मैंने लिखा प्रेम
तुमने लिखा दुरी ,
प्रेम ,
तुम्हारा नाम
दुरी है क्या !
चल पड़ती हो
यूँ मुँह फेर के ,
पीठ घुमा कर
एक बार भी
मेरी पुकार
क्या तुम
सुनोगी नहीं !
क्यूंकि
प्रेम का अर्थ
दुरी नहीं है।
केवल
प्रेम ही है,
मनुहार भी है।
लेकिन मनुहार
क्यों ,किसलिए
तुम दूर हो तुम मुझसे
प्रेम तुम सिर्फ और
सिर्फ मेरी ज़िन्दगी हो ,
मृत्यु नहीं !
इसलिए आओ पास
और देखो प्रेम का
अर्थ दुरी नहीं
प्रेम है सिर्फ प्रेम
Saturday, 17 June 2017
Friday, 16 June 2017
मैं उम्मीद में हूँ.
तुम्हारे बिना मेरी आवाज़
खामोश सी रहती है...
दिन जलता हुआ अलाव
और रात सर्द बर्फ सी......
सूरज पिघल कर टपक जाता
और चाँद जम जाता है....
तुम नहीं तो जिंदगी
थम सी जाती है....
पर तुम्हारा ख्याल है
की मुझे जिंदा रखता है....
तुम्हारी बातों की खुशबु
मुझे महकाती है...
मैं इस उम्मीद में की तुम
वापिस आओगी देखने की
जिंदा हूँ...... मैं
तुम्हारे संवाद के बिना जीना...
मेरे लिए मुश्किल होगा
तुम्हारे संवाद के बिना जीना...
तुम्हारी आवाज़ जिस दिन
ना सुनू तो लगे
जैसे दिन जिया ही नहीं....
तुम्हारी आँखों में
जो न झाँकू तो
समंदर भी सहरा सा लगे है...
तुम्हारे बिना न तो कोयल गाती....
न ही फूल खिलते हैं....
न सागर ठाठें मारता है....
और न ही हवाएं बहती हैं.....
तुम्हारे बिना मेरी
सांसें चलती नहीं
बस एक बुझे हुए दिए की
लौ की तरह थरथराती है......
तुम्हारे संवाद के बिना जीना...
तुम्हारी आवाज़ जिस दिन
ना सुनू तो लगे
जैसे दिन जिया ही नहीं....
तुम्हारी आँखों में
जो न झाँकू तो
समंदर भी सहरा सा लगे है...
तुम्हारे बिना न तो कोयल गाती....
न ही फूल खिलते हैं....
न सागर ठाठें मारता है....
और न ही हवाएं बहती हैं.....
तुम्हारे बिना मेरी
सांसें चलती नहीं
बस एक बुझे हुए दिए की
लौ की तरह थरथराती है......
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प्रेम !!
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