Friday, 30 June 2017

पास  लाने की फ़रियाद 


जब भी कुछ 
नयी बात 
करनी चाहता हु 
तो सब पुरानी 
बातें याद आ जाती है ,
चलने लगता हु 
यु आगे तो 
ज़ेहन में फिर 
तुझे अपने पास 
लाने की फ़रियाद 
याद आती है 
और मैं फिर से 
नयी बात करना 
छोड़ उन्ही पुरानी
बातों में जीने 
लगता हु 

एक सम्पूर्ण अभिव्यक्ति

भावनाए जब बहती है 
मन में...
समेटे खुद में ढेरो ज़ज़्बात
उढेल देना चाहती है 
किसी ऐसे पर जो हो 
सिर्फ उसका जिसे फिक्र हो
सिर्फ उसकी और फिर 
भावनाएं उतर कर अपनी
लज़्ज़ा का चोला न्योछावर 
करती है अपना सबकुछ
उसको और समेत लेती है उसे 
अपने आलिंगन में तब वो 
हो जाती है एक सम्पूर्ण 
अभिव्यक्ति 
भावनाए जब बहती है 
मन में...

बस थोड़ी सी ख़ुशी


सब कुछ तो है,
थोड़ी सी ख़ुशी ,
थोडा सा सुकून;
और थोडा सा 
चैन ही तो नहीं है!
और हाँ आस भी तो है!
सब कुछ तो है,
छोटी सी ज़िन्दगी,
पाषाण सा तन,
और ये शिला सा स्थिर 
मन सब यही है!
और हाँ रुकी-रुकी सी 
सांस भी तो है!
देखा;सब कुछ तो है,
बस थोड़ी सी ख़ुशी ,
थोडा सा सुकून;
और थोडा सा 
चैन ही तो नहीं है!

कभी-कभी बन आंसू 

भावनाए बहती है
मन में....
सब कुछ ही तो  
कह देना चाहती है....
पर कई बार वो  
खो जाती है मन सागर में 
किसी लहर की के निचे 
दबकर ज्यूँ कोई अनजान 
भंवर लीन लेता है खुद में ,
कई चीज़ो को लहरों के संग 
वैसे ही भावनाएं मन में उठती है 
और मन ही में मर जाती है...
या कभी-कभी तो बन आंसू 
खुद अपनी मौत बन जाती है...
कभी कोई अधूरा चित्र बन 
अपनी लाचारी कहती है...
या कभी-कभी पाकर 
कलम का सहारा कविता 
बन जाती है...
जब भावनाए बहती है
मन में....

जब भावनाए बहती है

भावनाए बहती है
मन में....
सब कुछ ही तो  
कह देना चाहती है....
खुद मचलती है,
और हमें उकसाती है,
बादलो सी उमड़-घुमड़ 
पुरे दिलो दिमाग 
पर छा आती है......
मूसलाधार बारिश सी 
बरसना चाहती है.....
एक सींप में समां 
मोती बन जाने का 
मन करता है तब ....
जब भावनाए बहती है
मन में....


आज तुम नहीं साथ


ऐसा नहीं की 
आज तुम नहीं साथ तो 
सूरज नहीं निकला 
पर उसमे वो चमक ही कहाँ
ऐसा नहीं की 
आज तुम नहीं साथ तो 
फूल नहीं खिला 
पर उसमे वो महक ही कहाँ ........
जब तुम नहीं हो तो सब हो
कर भी कुछ नहीं होता
ना सूरज में चमक ना हवाओं
में महक और आज तुम नहीं
हो तो मेरी आँखों में भी वो
नूर कहाँ .................

मुझ से तुम हो


वेश बदल कर
भी मिलोगे तो 
भी आहटें पहचान 
लुंगी    ..
लब सिल कर रखोगे  
लेकिन नज़रों 
का बोलना ना
छुपा पाओगे   ...
चलते -चलते राह
बदल दोगे पर 
ये पगडंडियाँ ना
छोड़ पाओगे  ...
मिलोगे भी नहीं
बात भी नहीं करोगे
पर मेरे सपनो में 
आना कैसे 
छोड़ पाओगे तुम  ...
तुम से मैं हूँ
मुझ से तुम हो
हर बात मुझसे जुडी है
तुम मुझसे ना
छुपा पाओगे ...

Thursday, 29 June 2017

भूरी-भूरी आंखे

दो भूरी-भूरी आंखे
झपकाते हुए ,
मैं अक्सर 
तुम्हारी तस्वीर में
अपनी खुसी खोजता हूँ ...
वो खुसी जो कभी 
मैंने तुम्हें दी थी  ,
तुम्हारा हाथ थामकर 
तुम्हारी सागर की सी 
गहराई लिए दो आँखों  ,
को एक टक देखते हुए ...
कहा था सदा यु ही 
एक टक देखते रहना
चाहता हु मैं तुम्हारी इन 
दो काली काली आँखों में 
दो भूरी-भूरी आंखे
झपकाते हुए ,
मैं अक्सर 
तुम्हारी तस्वीर में
अपनी खुसी खोजता हूँ ...

आवाज़ तेरी अंतस में


सीढ़ी तो बना ली थी 
तुम तक पहुँचने की 
पर बदनसीबी देखो 
नींद टूट गयी 
तुम तक पहुँचने से 
दो कदम पहले ही
पर मैंने भी , 
चुरा के रख ली है
आवाज़ तेरी अंतस में,
सताने लगती है 
जब भी तनहाई,
मूँद आँखों को 
सुन लेता हूँ तब

ना तू मेरे पास है 

ओ चाँद 
तुझे देख कर 
मुझे उसकी याद 
आ जाती है ...
उसकी सूरत मुझे  
तुझमे दिखाई देती  
है मुझे ...
ना तू मेरे पास है 
ना ही वो मेरे पास है ...
पर क्या करू 
यह राज़ अभी भी 
यह पागल दिल 
नहीं समझता है  ...
और कहता है
दूर रहने वाले 
पराये थोड़ी होते है 

एक दिन तुम आओगी 


मैं इसी आस      
मैं ही जीता हूँ
और इसी आस 
में मग्न भी रहना 
चाहता हु जिसमे 
मुझे यूँ भी लगता है
एक दिन तुम आओगी 
और मेरे कंधे पर धीरे 
हाथ रखोगी और 
मैं पलट कर देखूंगा  ,
तुम्हे अपने सामने
ही पाऊंगा ...

Tuesday, 27 June 2017

तुम वंही खड़ी हो


इकरार और इनकार 
के बीच 
एक बार फिर 
से दुविधा ...
काश के तुम 
इकरार करती 
तो मैं तुम्हारा 
हाथ थाम लेकर आता
तुम्हे अपने घर  ...
मेरा हाथ आगे 
बढ़ने के बाद भी 
तुम वंही खड़ी हो
जंहा मिली थी 
तुम मुझे पहले दिन  
याद रखना इकरार 
उस मोड़ पर आकर 
मत करना जब सारे मोड़ 
ही मुड़ गए हो 
ज़िन्दगी के 

तुम्हारे आने का इशारा था  ....!


चुप-चाप सी 
चल रही थी
मेरी जिन्दगी ,
एक ठहरी हुयी
नदी सी  ..
ना सुबह के 
होने की थी कोई
उमंग ही , ना ही 
शाम होने की
ललक ही थी ,
दिन चल रहे थे
और रातें रुकी 
हुई सी थी .. सहसा 
ये क्या हुआ था ,
मेरे मन में ये कैसी
हिलोर उठी थी 
शांत लहरों पर 
रुकी हुई मेरी 
ज़िन्दगी की 
पतवार किसने
थाम ली ...!
क्या यह तुम्हारे आने
का इशारा था  ....!

मेरी हर साँस

चाहे मैं चुप रहु
कुछ ना बोलू 
मेरी चुप्पी को भी 
तुम सुन लेती हो  ...
कैसे ...!
आज भी मैं बिन बोले
चला गया था 
तो क्या तुम 
अनसुनी रह गयी 
मेरी बातें ,
मेरी हर साँस तुझे ही
आवाजें देती है
चाहे मैं कुछ ना बोलू  ...
ये तू जान गयी है 
और इसलिए तुम 
थोड़ी अब लापरवाह 
हो गयी हो ?

मेरी पुरानी आदत है ...



चाहे मैं चुप रहु
कुछ ना बोलू 
मेरी चुप्पी को भी 
तुम सुन लेती हो  ...
कैसे ...!
ये राज़ तूं मैं नहीं 
जान सका अब तक 
क्यूंकि
शायद तुम भी 
अब तक ये राज़ 
नहीं समझी ...
पर मुझे तो तुम 
समझ ही गई हो 
चुप होठों से
कुछ ना बोल कर भी
सब कुछ समझा देना
यह मेरी पुरानी
आदत है ...

Monday, 26 June 2017

तुम्हारी आँखों के ख्वाब...


सुनो आओ...
कुछ देर मेरे पास बैठो,
मैं लौटा दूंगी
तुम्हारा खोया हुआ,
विश्वास...
कुछ देर बैठो...
मेरे हाथों को थाम कर,
मैं लौटा दूंगी तुम्हे
जीने का एहसास...
कुछ देर देखो...
तुम मेरी आँखों में,
मैं लौटा दूंगी...
तुम्हारी आँखों के ख्वाब...
कुछ देर सुन लो,
तुम इन धड़कनो की आवाज़,
तुम्हे मिल जायँगे,
सवालो के जवाब
पर मैं तो बैठा हु
तुम्हारे हांथो के थामे
पिछले पांच सालो से
देखे हुए तुम्हारी ही
आँखों में जंहा रखे थे
मैंने अपने ख्वाब जो
अब तक है अधूरे 


काली अमावस की रात


कितनी बार और 
किस -किस तरह बताऊँ तुम्हें
कितना इंतजार करता हूँ
तुम्हारा और
एक तुम हो कि
अपना चेहरा दिखला कर
फिर से गुम हो जाती हो ...
सोचा था अब नहीं जाने दूंगा
तुम्हे यु रोज की तरह
पर तुम तो चंद्रमाँ  की
बढती कलाओं
की तरह आयी और
घटती कलाओं की
तरह चली गयी  ...
छोड़ गए बस यादों
और इंतजार की
काली अमावस की रात ,
अब फिर से तुम्हारे
आने का इंतज़ार है
शायद अब ना जाने दू
तुम्हे फिर से 

अपनी आँखों के सामने 


कितनी बार और 
किस -किस तरह बताऊँ तुम्हें
कितना इंतजार करता हूँ 
तुम्हारा और 
एक तुम हो कि  
अपना चेहरा दिखला कर 
फिर से गुम हो जाती हो ...
सोचा था 
इस बार जब तुम आओगी  
तो कह दूंगा तुम्हे 
अब और नहीं देखना 
तुम्हारा चेहरा उस दूर चाँद में
अब तो तुम्हे देखना है 
अपनी आँखों के सामने 
हर पल आती जाती
सांसो के साथ बस 

इंतजार करता हूँ तुम्हारा

कितनी बार और 
किस -किस तरह बताऊँ तुम्हें
कितना इंतजार करता हूँ 
तुम्हारा और 
एक तुम हो कि  
अपना चेहरा दिखला कर 
फिर से गुम हो जाती हो ...
सोचा था 
इस बार जब तुम आओगी  
थामकर हाथ तुम्हारा 
उस बाग़ में लेकर जाऊँगा  ...
और कह दूंगा 
अपने मन की बात 
तुम्हारा चेहरा नहीं देखा जाता 
अब मुझसे चाँद में ...

Saturday, 24 June 2017

तुम बिलकुल पागल हो....

वो चाँद की रात,
और वो तुम्हारी बाते...
तुम कुछ भी कह रही और  
मैं लिख रहा था ,
तुम को शब्दों में 
बांध रहा था ..
और तुम नाराज भी 
हो रही थी कि,
क्यों लिख रहा हूँ मैं...
मैं हर बार कहता कि,
तुम्हे अपने पास 
संजो कर रख रहा हूँ...
और हसँ कर कह देती कि,
तुम बिलकुल पागल हो....
और मैं भी मान लेता की,
हाँ मैं पागल ही सही...
वो ही तो पागल था
जिसने मुझे कभी 
तुमसे अलग नहीं होने दिया 

धागे गिरहे लगाने को

लेता नहीं मैं कभी
धागे कच्चे लगाने को गिरहे ,
होती है जब भी टूटन
खोता नहीं मैं
आपा अपना,
बंटकर करता हूँ
फिर से उन्हें एक सा
टूटे हुए सिरों को
लगाकर पानी थोड़ा
घुमा फिरा कर
थोड़ा,
लगाता हूँ
फिर गिरह 
एक मज़बूत सी,
काट देता हूँ फिर
वो हिस्सा...

रात को इंतज़ार था


चाँद निकला
और
छुप गया था
बादलों में,
ख्वाहिशों से घिरी
रात को
इंतज़ार था
सहर का,
महताब
ना सही
आफताब
तो भर देगा
उजालों की
सौगातों से
बेवक्त धुंधली हुई
जिंदगी को..

ख़्वाबों के समंदर

ख़्वाबों के समंदर में 
एक टुकड़ा उम्मीदों का
जब फेंकता हूँ शिद्दत से,
कुछ बूँदें आस की 
छलक ही आती हैं 
मेरे चेहरे पर भी...
तुम.. 
उन बूंदों की ठंडक हो,
ताज़गी भर्ती हो 
उन रगों में हर पल,
हर रोज़ नया करती 
हो मेरा जीवन..
हर रोज़ मुझमे 
सपने नए भरती हो।

Friday, 23 June 2017

तुम मेरे पास आना 

बारिश की इन 
बूंदों के साथ,
हम-तुम खेले है...
इन बूंदों के लिये ही,
मिले और बिछड़े है...
तुम्हारी जिद इन 
बूंदों को पकड़ लेने की,
मेरी जिद इन बूंदों में 
साथ तुम्हारे भीग जाने की...
ख्वाइशें फिर चाहे अलग हो,
बारिश की बूंदों के साथ,
खेलने की चाह इक थी....
ठीक वैसे ही जैसे 
तुम मेरे पास आना 
चाहती हो पर किसी का
दिल दुखाये बगैर और
मैंने ठान रखा है नहीं 
जीना तेरे बगैर चाहे 
ख़ुदा को करना पड़े नाराज़

साथ साथ चलने के लिए...



हम तुम जो यु
साथ साथ चल रहे हैं
एक दूसरे का हाथ, 
हाथ में लिए
सुनसान राहों पर
मैं देखता  हूँ, 
सूरज को तुम्हारी 
आँखों में ढलते हुए...
मैं इसे अपनी आँखों में 
समां कर रखूँगा रात भर...
सुंदर सपनों की तरह
सुबह फिर से 
निकलेगा यह सूरज
हम फिर निकल 
पड़ेंगे साथ साथ
कभी ना खत्म होने वाली
लंबी राहों पर
साथ साथ चलने के लिए...
उम्र भर यु ही 
थामे तुम्हारा हाथ 

मेरे पीछे-पीछे

स्मृतियों में ले जाता आया 
हु मैं तुम्हे आज तक 
अपने घर इस 
विस्वास के साथ की 
एक दिन तुम खुद 
आओगी मेरे पीछे-पीछे 
वही चमक अपनी 
आँखों में लिए जिनसे
तुमने दिया था मुझे
पुर्नजन्म और अपनी 
मुस्कराहट को सहेजने
मेरी ऊपर निचे होती 
सांसो में और मुझे मानोगी
इस काबिल की मैं 
तुम्हारे अपनेपन के 
अंतरग स्पर्श के चिन्हो 
को तरुणाई के साथ 
रख सकूंगा सदा सदा 
के लिए अपनी दहलीज़ 
ही नहीं बल्कि हृदय 
के अंदर 

मैं तुम्‍हें घर ले जाता हूँ


वह ! तुम ही थी
साँसों में चमक के लिए
गहराई से मुझे 
पुनर्जन्‍म देनेवाली
तुम्‍हारी मुस्‍कुराहट 
की खुसबू 
मुझे तुम तक 
समेटती-सहेजती है
मैं तुम्‍हें घर ले जाता हूँ
अपनी स्‍मृतियों और 
विचारों की
झोली में भरकर
रोज रोज  किंयूंकि शायद 
तुम्हारी नजरो में अभी 
मैं इस काबिल नहीं कि
तुम्‍हारे अपनेपन के अंतरंग 
स्‍पर्श के चिह्नों को
तरुणाई के साथ 
अपनी दहलीज़ के अंदर 
ले जा सकु

Thursday, 22 June 2017

मैं उपस्थित हूँ


सुबह के कोहरे की 
रोशनी में
छुप जाती है 
मेरी पहचान की आकृति
लेकिन खून की लकीर है
मेरी हथेली में
चिड़ियों की चोंच से 
चिड़ियों की गुहार में
मैं उपस्थित हूँ
यदि तुम
कम-से-कम
मुझे सुनने की 
कोशि‍श करो
तो तुम्हे मिलूंगा 
रोज ही यु दाने लिए 
चिड़ियों के लिए
तुम भी तो मेरी ही 
चिडया हो ना
फिर तुम किन्यु नहीं 
आती यु रोज मेरी 
हथेलियों से दाने चुगने 
बोलो

नाजुक कहकहे


खिलते हुए तुम्‍हारे,
गुलाबी होठो से आते हुए
नाजुक कहकहे की साँसें
हिलाती है मुझे
सूर्य और हवा
झर आए मुझ तक
दूर की आवाज
अब कितना नजदीक लगती है
मेरे बगल में खड़ी
लेकिन मेरी हर छाया से बेखबर
वह कोमलतम
उत्तेजित और सघन
जल हवा रोशनी
बदलती है तुम्‍हारी तरह
जैसे बदलता मैं
हम हरेक की चेतना में
जगाएँगे ये शब्‍द-
कि झूठ और असत्‍य को
ललकारेंगे हम
सबके बीच में रह कर 
यही स्वप्न तो देखता 
आया हु मैं कब से

एक रात का इंतज़ार है


जब भी 
खुल कर बरसती 
है घटाए  ...
खिड़की के गीले 
शीशों से परे
धुंधला जाते है 
सब मंज़र  ....
उसी तरह के जब
मैंने माटी की तरह 
ही गूंथना चाहा था
अपने इन हाथो से 
एक आकर देने के लिए 
तुम्हे उस रात के 
सपने में  ...
ऐसी ही एक रात 
का इंतज़ार है 
मुझे बरसो से

अनुभव कर लेती है

मैं जानना चाहता हूँ तुम्हें
जैसे
बीज सूँघ लेते हैं 
ऋतुओं की गंध
और पृथ्वी जान लेती है 
बीज की अकुलाहट
मैं जानना चाहता हूँ तुम्हें
जैसे स्त्री अनुभव कर लेती है
भ्रूण के शिशु होने का स्पंदन
जैसे आत्मा जान लेती है 
अपने देह की जरूरत
और देह जानती है 
आत्मा का सुख
मैं जानना चाहता हूँ तुम्हें
ऐसे

Wednesday, 21 June 2017

जड़ों की जरूरत

मैं जानना चाहता हूँ 
तुम्हें जैसे
पृथ्वी जानती है 
सृष्टि का ऋतुचक्र
ऋतुचक्र जानते हैं 
अपने फल,फूल,फसल को 
मैं जानना चाहता हूँ 
तुम्हें जैसे
वर्षा पहचानती है 
अपने कीट-पतंग
मैं जानना चाहता हूँ 
तुम्हें जैसे
फुनगी जानती है 
जड़ों की जरूरत
और जड़ें पहचानती हैं 
फुनगी की खुराक

मैं जानना चाहता हूँ तुम्हें



मैं जानना चाहता हूँ तुम्हें
जैसे
फूल जानता है गंध को 
मैं जानना चाहता हूँ तुम्हें
जैसे
पानी जानता है स्वाद को 
मैं जानना चाहता हूँ तुम्हें
जैसे
धरती जानती है जल पीना
मैं जानना चाहता हूँ तुम्हें
जैसे
बीज जानता है अपने फल को , 
मैं जानना चाहता हूँ तुम्हें
जैसे
हवाएँ पहचानती हैं 
मानसूनी बादल को 
जैसे बादल जानते हैं 
धरती की प्यास को 
मैं जानना चाहता हूँ तुम्हें
जैसे
शब्द जानते हैं अपने अर्थ

तुम्हारी हथेलियों की तपन


मैं अब अपनी 
चेतना को उतारकर
रद्द हो चुके कपड़ों की तरह 
फेंक देना चाहता हूँ
इन दिनों वही 
करना चाहता हूँ
जैसा तुम कहती जाओ
तुम्हारी हथेलियों की 
तपन को 
फैलाकर अपनी नस नस में
पकड़कर उँगली तुम्हारी 
चलते जाना चाहता हूँ
शहर के आखिरी 
छोर वाले घर तक
आज, अँधेरा घिर आने की 
परवाह किए बगैर
वो सब्द सुनने को 
बेक़रार मैं कर रहा हु 
आज भी इंतज़ार
तुम्हारा 

समय के उस पार  

ओ प्रेमा 
मैं चाहता हूँ
तुम्हारे सुख-दुख बाँटना
तुम्हारे सपनों की 
दुनिया से परिचित होना 
जाना चाहता हूँ तुम्हारे साथ
समय के उस आयाम में
जहाँ तुम अकेले
अब तक, अकेले ही 
जाती रही जबकि 
मैंने हमेशा वो ही 
सुख-दुःख अपनाये है 
जो तुझे छूकर आये है 
पर किन्यु तुम हमेशा 
अकेले ही चली जाती हो 
समय के उस पार  
अकेले ही बोलो⁠⁠⁠⁠

Tuesday, 20 June 2017

गहरे पानी पैठना

खोना पड़ता है
बहुत सारी बातों को
बल्कि खो देना पड़ता है 
खुद को ही
इस भय से
प्रेम में पूर्ण-समर्पण
न कर पाने वालों
की संख्या अनगिनत है।
सतह पर ही तैरते रहने से
जल की गहराई
नहीं आँकी जा सकती
उसके लिये गहरे पानी पैठना
ही पड़ता है।
और समर्पण जब
तक ना हो पूर्ण 
प्रेम को पाया नहीं 
जा सकता पूरी तरह 

मुँह क्यों मोड़ना

प्रेम में होने से
भय कैसा?
मानव जीवन
का सारा लेखा-जोखा बाँच
पता यही चलता है –
चिर काल से ही
प्रेम में उत्थान पाये
अस्तित्व ही
जी पाये हैं
काल की सीमाओं को
पार कर पाये हैं।
इस अदभुत अनुभव
को जी पाने
की संभावना
से मुँह क्यों मोड़ना?

प्रेम में होकर

प्रेम करो
प्रेम पाओ
प्रेम में होकर ही तो
पता चलता है
कि प्रेममयी मानव
इतना सब कुछ देख, 
जान और जी सकता है
जो कभी भी संभव 
न हो पाता
और जीवन कितने ही 
अनदेखे पहलुओं से
अनभिज्ञ ही रह जाता
अगर प्रेम उसके जीवन 
में न आया होता।
सच कहा ना मैंने बोलो?

फिर ऐसा किन्यु है 


मैंने सूना है  ...
एक से नहीं रहते हालात
एक से नहीं रहते ताल्लुकात
एक से नहीं रहते सारे 
सवालात और जवाबात
एक से नहीं रहते तजुर्बात
एक से नहीं रहते दिन-रात
एक से नहीं रहते ये कायनात
खुदा के सिवा एक सा कोई नहीं रहता 
तो फिर ऐसा किन्यु है 
की मैं आज भी वैसे ही प्यासा हु 
जैसा उस दिन था जब देखा था 
मैंने तुम्हे पहली बार
तो फिर ऐसा किन्यु है 
आज भी दो घडी जो तुम 
नहीं दिखती मुझे तो मन 
मेरा बैचैन हो उठता है 
तो फिर ऐसा किन्यु है 
की आज भी एक दिन तुम
ना मिलो तो वो दिन जैसे 
गुजरता ही नहीं 
तुम ही बताओ किन्यु हु मैं 
आज भी वैसा ही तुम्हारे लिए 
जैसा मैं था उस दिन 
जिस दिन मैं मिला था तुम्हे 
पहली बार

Monday, 19 June 2017

तुम जीत हो

ओ मेरे प्रेम....
तुम जीत हो
लेकिन
हारा हु मैं 
तुम्हें पाने
की चाहत में...
फिर
मैं क्यों कर जीत पाता  ...
प्रेम
जहाँ तुम
वही मेरा डेरा
तुम्हारे कदमों
को पहचान
चला आता  हूँ...
ढूंढ ही लेता हूँ
तुम्हें
साथ है सदा का,
जैसे परछाई...
क्योंकि प्रेम
तुम प्रकाश हो
मेरा अंधकार नहीं....⁠⁠⁠⁠

तुम आशा हो


प्रेम.......
तुम आशा हो
मन की प्रिया हो
तन-मन को जो बांधे
वो एकता हो।
प्रेम
तुम नील -गगन की
नीलिमा में हो
मन की अपार  शांति में हो।
प्रेम
बस तुम हो
कभी -कभी ही नहीं
हमेशा ही कायम  हो।
प्रेम 
हो तुम जब तक 
तब तक मैं हु


मैं तुम्हारे साथ हूँ !

ख़ामोशी को खामोश 
समझना 
भूल ही होती है अक्सर । 
कितनी हलचल 
अनगिनत ज्वार भाटे
समाये होते है।
आँखों में समाई नमी
जाने कितने समंदर 
छिपाए होती हैं।
नहीं टूटते यह समंदर
ज्वार -भाटे ,
जब तक कोई
कंधे को छू कर ना कहे
कि मैं तुम्हारे साथ हूँ !
हर पल हर 
परिस्थिति में 
समझी तुम

प्रेम का अर्थ



मैंने लिखा प्रेम 
तुमने लिखा दुरी , 
प्रेम ,
तुम्हारा नाम
दुरी  है क्या !
चल पड़ती हो 
यूँ मुँह फेर के ,
पीठ घुमा कर
एक बार भी
मेरी पुकार
क्या तुम
सुनोगी नहीं !
क्यूंकि
प्रेम का अर्थ
दुरी नहीं है।
केवल
प्रेम ही है,
मनुहार भी है।
लेकिन मनुहार
क्यों ,किसलिए
तुम दूर हो तुम मुझसे 
प्रेम तुम सिर्फ और
सिर्फ मेरी ज़िन्दगी हो  ,
मृत्यु नहीं !
इसलिए आओ पास
और देखो प्रेम का
अर्थ दुरी नहीं 
प्रेम है सिर्फ प्रेम⁠⁠⁠⁠

Saturday, 17 June 2017

अकेला छोड़ जाती हो

दरवाजा बंद कर 
दस्तक भी
देती हो 
गुम हो कर
आवाज़
भी लगाती हो  ...
चुप रहने को कह 
नज़रो से सवाल
भी करती हो 
रोज रोज साथ होने 
को मेरे मिलने भी 
चली आती हो ...
ये तुम बार -बार ,
हर बार ,
मुझे कैसी 
दुविधा में घुमा 
जाती हो ... आने का बोल
यु रोज अकेला छोड़ जाती हो

आहिस्ते-आहिस्ते



तुम इतना 
आहिस्ते-आहिस्ते
मुझे बाँधती हो  ....
इतने मरोड़ों की झुर्रियाँ 
तुम मुझ में कितनी 
पुकारें उठा रही हो
कितनी बंशियाँ 
डाल रही हो मेरे जल में
मैं बिलकुल सीधा 
हो चूका हु और फिर भी 
जिस पर दौड़ती जा रही
है लाल-लाल चिंगारी 
तुम इतना 
आहिस्ते-आहिस्ते
मुझे बाँधती हो

मुझे बांधती रहो 

तुम इतना 
आहिस्ते-आहिस्ते
मुझे बाँधती हो  ....
जैसे तुम कोई 
इस्तरी हो और 
मैं कोई भीगी 
सलवटों भरी कमीज  ....
तुम आहिस्ते-आहिस्ते 
मुझे दबाती सहला रही हो
और मुझमे से जैसे 
भाप उठ रही है   ....
और सलवटें खुल-खुल रही हैं
यु ही आहिस्ते-आहिस्ते
मुझे बांधती रहो 

सुंदरता की परिभाषा 

तुम्हें जब मैंने देखा
पहले पहल  
तभी मैंने सोचा था
सबसे पहले  
क्यों न तुम्हीं को देखा
अब तक
दृष्टि खोजती क्या थी
कौन रूप क्या रंग
देखने को उड़ती थी
ज्योति‍-पंख पर
अब तुम्ही बताओ
मेरी आँखों की 
सुंदरता की परिभाषा 
ही बदल कर रख दी 
तुमने 

Friday, 16 June 2017

चाँद रहे सदा गवाह


एक ख्वाबो वाली रात 
तुम मैं और वो चाँद      
सब हो पागल
सब हो बहके..........
चाँद और बादलों के गुच्छे
उलझ पड़े बार बार
मेरी तुम्हारी तरह......
विस्तृत आकाश
समेटे चाँद को
जैसे मेरे आगोश में
सिमटी रहो तुम .....
वो रात ना गुजरे कभी .....
बादल ना 

मैं उम्मीद में हूँ.


तुम्हारे बिना मेरी आवाज़
खामोश सी रहती है...
दिन जलता हुआ अलाव
और रात सर्द बर्फ सी......
सूरज पिघल कर टपक जाता
और चाँद जम जाता है....
तुम नहीं तो जिंदगी
थम सी जाती है....
पर तुम्हारा ख्याल है
की मुझे जिंदा रखता है....
तुम्हारी बातों की खुशबु
मुझे महकाती है...
मैं इस उम्मीद में की तुम
वापिस आओगी देखने की 
जिंदा हूँ...... मैं 

तुम्हारे संवाद के बिना जीना...

मेरे लिए मुश्किल होगा
तुम्हारे संवाद के बिना जीना...
तुम्हारी आवाज़ जिस दिन
ना  सुनू तो लगे
जैसे दिन जिया ही नहीं....
तुम्हारी आँखों में
जो न झाँकू तो
समंदर भी सहरा सा लगे है...
तुम्हारे बिना न तो कोयल गाती....
न ही फूल खिलते हैं....
न सागर ठाठें मारता है....
और न ही हवाएं बहती हैं.....
तुम्हारे बिना मेरी
सांसें चलती नहीं
बस एक बुझे हुए दिए की
लौ की तरह थरथराती है......

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !