Tuesday, 31 December 2019

हांथों की लकीरों !


तुझे अपना बनाने का जो ख्वाब है ,  
उसे अपनी आँखों में सजाये बैठा है वो ; 

अपने हांथों की लकीरों में तेरे ही ,
नाम की एक लकीर बना रहा है वो ; 

तुझे खोने के डर से ख़ौफ़ज़दा है वो ,
अश्क़ों को अपनी पलकों में सजाये बैठा है वो ;

बिखरे हुए ख़्वाबों के टुकड़े बटोरकर ,
नए ख़्वाबों को ढाढ़स बंधा रहा है वो ;

सिसकती अपनी सांसों को सीने में दबाये ,
नई उम्मीदों पर महल खड़ा कर रहा है वो ;

अपने ज़ज़्बातों से कुछ इस तरह लड़ रहा है वो ;
कि किस्तों में हंस रहा है किस्तों में रो रहा है वो !

बंद मुट्ठी !


मुट्ठी में रख लूंगा !

सोचा था मैंने 
इस मेरी मुट्ठी में  
संभाल कर और  
सबसे छुपा कर 
रख लूंगा मैं तुम्हें ! 

बड़े जतन से 
बंद की थी ये 
मुट्ठी मैंने रख 
कर यु अंदर तुम्हें !

पर न जाने कैसे 
और कब फिसल  
कर मेरी मुट्ठी से यूँ  
बीतते इस वर्ष की 
भांति आगे बढ़ गई तू ! 
  
सूखी रेत की किरकिरी 
की तरह मेरी इस हस्ती 
में रड़कती रह गयी तू !

अब जब देखता हूँ  
खुद की मुट्ठी तो आँखें 
मेरी यु ही बरबस समंदर 
हुए जाती है ! 

Monday, 30 December 2019

मेरी मन्नत !


मेरी मन्नत !

मैं उसे पाने को अपने रब से 
मन्नत और उसके कुछ अपनों 
से इल्तिज़ा किया करता हूँ ! 
जिसके लिए मैं कुछ अपनों 
और कुछ परायों का दिल अक्सर 
ही दुखा दिया करता हूँ ! 
मैं अब तो अक्सर ही अँधेरे में 
भी एक उससे ही तो बातें किया 
करता हूँ !
अब तक किसी को कुछ हासिल 
नहीं हुआ कुछ भी इस ज़िद्द से ये 
जानता हूँ !
मैं फिर भी ना जाने क्यों ये एक 
ज़िद्द अब बस दुआ की ही तरह 
किया करता हूँ !
समझाते है सभी अक्सर मुझे 
गर मेरी है वो तो कंही और वो 
जा नहीं सकती है !
गर परायी है तो मैं उसे पा नहीं 
सकता हूँ ! 
पर ना जाने क्यों ये ज़िद्द अब 
मैं बस दुआ की तरह किया 
करता हूँ !

Sunday, 29 December 2019

चाह !


चाह !

अधर तेरे जलते 
दिये से ;
लफ्ज़ तेरे जलती 
बाती से ;
मुस्कान तेरी उसकी 
लौ सी ;
इन्हे निहारूँ तो छूने 
की चाह ;
छु लूँ तो चुम लेने 
की चाह ;
चुम लूँ तो जल जाने 
की चाह ;
जलने लगूँ तो फ़नाह  
होने की चाह ;
फ़नाह हो जाऊँ तो फिर से 
मिलने की चाह ;
अधर तेरे जलते 
दिये से !   

Saturday, 28 December 2019

मैं होता हूँ वहां !


कुछ भी हाँ कुछ भी कहाँ होता है वहाँ , 
जब तुम मेरे साथ नहीं होती हो वहाँ ;
  
सिर्फ सन्नाटें की दीवारें होती है वहाँ ,  
और बेक़रारियों की छत होती है वहाँ ;

बेताबियों की बेतरतीब जमीं होती है वहाँ ,  
हाँ हरी परत तो बिल्कुल नहीं होती है वहाँ ; 

आसमान का नीला आंचल नहीं होता है वहाँ ,  
हवाओं के बीच कंही झूल रहा होता हूँ मैं वहाँ ;

तुम और तुम्हारी बेसुध यादें होती है वहाँ ,  
तेज़-तेज़ दौड़ती हुई धड़कने होती है वहाँ ;
   
मेरे काबू से बहार मेरी ही सांसें होती है वहाँ , 
और मैं एकदम तन्हा अकेला होता हूँ वहाँ ; 

तन्हाई की जुबान पर मेरा नाम होता है वहाँ , 
तब भी मेरी जुबान पर तेरा नाम होता है वहाँ ;

खुद-ब-खुद से अजब सी तकरार होती है वहाँ ,
और टूटता बिखरता हुआ सा होता हूँ मैं वहाँ ;

तारो की टिमटिमाहट भी जलती बुझती है वहाँ , 
हाँ मेरी तमाम उलझने भी हैरान होती है वहाँ ;

मेरी सारी संवेदनाएं बिलकुल बेबस होती है वहाँ ,
फिर भी एक तुम्हे अपने सबसे करीब पता हूँ वहाँ ; 

तुम्हें अपने पास बुलाने की उम्मीद में प्रखर होता है वहाँ ; 
तब ही तो तुम्हे तुम्हारे इंतज़ार में बैठा मिलता हूँ मैं वहां !

Friday, 27 December 2019

तुम ही बताओ !


तुम ही बताओ !

मैं तुम्हारे दर्द पर  
कविता लिखूंगा तो 
क्या कवि हो जाऊँगा ! 
तुम्हारे उसी दर्द की टीस  
पर गर मर्सिये गाऊंगा तो 
क्या चर्चा में आ जाऊंगा ! 
तुम्हारे दर्द के लिए 
किसी से दो-दो हाथ होने 
की जगह गर सिर्फ कागज़ 
को काला करता रहूँगा !
तो क्या योद्धा होने के 
गुमान को अपने जहन 
में पाल सकूंगा ! 
तुम्हारी दर्द में छुपी हुई  
एक हंसी को गर मैं तलाश 
भी लूंगा तो क्या मैं चैन 
को पा सकूँगा !
तुम ही बताओ ना 
क्या मैं ऐसा कर के 
अपने जमीर को जिंदा 
रख पाऊंगा !

Thursday, 26 December 2019

मेरी क्रिसमस !


मेरी क्रिसमस !

इतनी ठंडक भरी रातों
में भी जो मैरी क्रिसमस
मैरी क्रिसमस गाते-गाते 
आता है !

वही जो अपने साथ एक 
थैला भी भरकर लाता है !

उस थैले में वो सभी के
लिए थोड़ी थोड़ी खुशियां
भरकर लाता है !

वो संसार के सभी बच्चों
पर यीशु मसीह का प्यार 
लुटाने ही तो आता है !

जो हर दिसंबर की चौबीस 
तारीख की रात को ही तो 
आता है ! 

वही तो है जिसको सारे
बच्चे सांता-सांता कह कर
बुलाते है !

Wednesday, 25 December 2019

एक देह है एक रूह है !


एक देह है और एक रूह है ;
कोई तो बताओ इन दोनों में , 
कौन बड़ा है और कौन छोटा है !

एक देह है और एक रूह है ;
दोनों जब तक एक साथ है ,
तो पुरे है जुदा है तो अधुरे हैं !

एक देह है और एक रूह है ;
किसी के लिए रूह रूहानी है ,
किसी के लिए देह सुहानी है !

एक देह है और एक रूह है ;
देह अपना विस्तार चाहती है ,
रूह बस सिमटना चाहती है !

एक देह है और एक रूह है ;
एक के ना होने से दूजी लाश है , 
तो एक  दर दर भटकती आत्मा है ! 

एक देह है और एक रूह है ;
एक विशुद्ध प्रेम की निशानी है ,
तो दूजी ईश के होने की गवाही है !

एक देह है और एक रूह है ;
दोनों एक दूजे के लिए बनी है , 
दोनों अद्वैत की परिभाषा है !

एक देह है और एक रूह है ;
दोनों मिलकर ईश की कृति है , 
दोनों बिछुड़ कर बिधाता की लेखनी है !

Tuesday, 24 December 2019

मेरी क्रिसमस !


मेरी क्रिसमस !

इतनी ठंड
भरी रातों
में भी जो
मेरी क्रिसमस
गाते-गाते
आता है !
वही जो अपने 
साथ एक थैला 
भरकर लाता है !
उस थैले में
सभी के लिए 
थोड़ी थोड़ी खुशियां
भरकर लाता है !
वो संसार के
सभी बच्चों को
प्यार करने ही
तो आता है !
हर दिसंबर कि
चौबीस तारीख
कि रात को ही  
तो वो आता है ! 
वही तो है जो 
सांता-सांता 
कहलाता है !

ये मैं ही तो है !


ये मैं ही तो है !

ये मैं ही तो है , 
जो हम सब को अपने 
अपने हम से दूर रखता है ! 

ये मैं तब चूं से मैं भी 
कहाँ करता है , जब हम 
मैं से हम होने निकलते है !

ये मैं ना जाने तब कहां 
हमारे अंदर ही छुपा बैठा 
रहता है ! 

जब हम किसी अनजान को 
अपना बनाने की जद्दोजहद 
में लगे रहते हैं !

ये मैं तब ही ना जाने क्यों 
हमारे ऊपर हावी होने को 
तत्पर होता है !

जब हम उस अनजान को
अपना बना कर उस से कई 
वादे कर चुके होते हैं !

ये मैं ना जाने क्यों बस 
उस अनजान पर अपना 
आधिपत्य जमाने की ही 
कोशिश में लगा रहता है।

Monday, 23 December 2019

मेरी ज़िद्द !


मेरी ज़िद्द !

तुम्हारी ज़िद्द है 
मुझे हराने की  
और मेरी ज़िद्द है
तुम्हे अपने पास 
ले आने की ! 
तुम लाख कोशिश  
कर लो यूँ मुझसे 
दूर रहने की !
लेकिन याद रखना 
इस बार तुम्हारी 
हार तय है !  
मेरे अस्तित्व को 
अब और नहीं नकार 
सकती तुम !
यकीं है मुझे खुद 
पर इतना कि अब  
एक दिन जीतूंगा 
मैं और हरोगी तुम ! 
तुम अब नहीं हरा 
सकती मुझे और तुम 
नहीं तोड़ सकती अब  
मेरी हिम्मत ! 
तुम नहीं दे सकती 
शिकस्त अब मुझे 
यूँ बार बार अपनी  
गलतियों को दोहरा 
दोहरा कर के !

Sunday, 22 December 2019

मनः कृष्णा !


मनः कृष्णा !

मन ही तो कृष्ण है 
मन ही तो श्याम है
तब ही तो मन चंचल है 
तब ही तो मन अधीर है
वो कहाँ कभी किसी के  
कहने पर ठहरता है
कहाँ किसी के बुलावे  
पर वो साथ चलता है  
वो तो हमारी सांस के 
संग संग ही हम कदम 
होकर उसकी पदचाप 
से अपनी पदचाप 
मिला कर चलता है
वो अविराम चलता है 
मन ही तो कृष्ण है 
मन ही तो श्याम है
तब ही तो मन चंचल है 
तब ही तो मन अधीर है !

Saturday, 21 December 2019

पांच ऋतुएँ !


पांच ऋतुएँ !

अगर ऋतुएँ चार नहीं 
पांच होती तो किसी को  
कुछ बताना नहीं पड़ता !
अगर ऋतुएँ चार नहीं 
पांच होती तो किसी को 
अलग से पढ़ाना नहीं पड़ता !
अगर ऋतुएँ चार नहीं 
पांच होती तो कितना 
अच्छा होता प्रकृति स्वयं 
ही अपने कृत्यों से सबको 
सब कुछ सिखला देती ! 
उस ऋतु में प्रकृति सिर्फ
और सिर्फ लाल लाल रंग 
के ही पुष्प खिलाती !
जाड़ा गर्मी बरसात और 
बसंत के साथ एक ऋतु 
और होती जिसे हम सब 
रजस्वला ऋतु ही कहते ! 
अगर ऋतुएँ चार नहीं 
पांच होती तो किसी को  
कुछ सिखाना नहीं पड़ता !

Friday, 20 December 2019

मैं एक सिर्फ मैं !


मैं एक सिर्फ मैं !

मैं....
जो कभी सिर्फ एक मैं नहीं रहा ; 
तुझे पाने की ज़िद में !
मैं.... 
जो कभी सिर्फ एक मैं नहीं रहा ; 
तुझे महज़ पास बुलाने की ज़िद में !
मैं.... 
जो कभी सिर्फ एक मैं नहीं रहा ;
एक सिर्फ तुझे चाहने की ज़िद में !
मैं.... 
जो कभी सिर्फ एक मैं नहीं रहा ;
एक सिर्फ तुझे गुनगुनाने की ज़िद में !
मैं.... 
जो कभी सिर्फ एक मैं ही था ; 
तुझसे दिल लगाने के पहले ! 
ओ "पगली" वो 
मैं.... 
अब एक सिर्फ मैं नहीं रहा ;
तुझसे मिलने के बाद !

Thursday, 19 December 2019

शर्द रात !


शर्द रात !

दहकती रातों की 
चांदनी में ;
बहकती जवानी के 
अरमानो में ;
चंचल हवाओं की
सरसराहटों में ; 
लरजते सांसों की 
कंपकपाहट में ;
प्रिय की बाँहों 
की गिरफ्त में ;
रातों की बोझिल 
खामोशियों में ;
पिघलते है जमे,
अरमानो के काफिले ;
शर्द की ठिठुरती  
रातों में !

Wednesday, 18 December 2019

प्यार तेरा !


प्यार तेरा !

बेमौसम बरसात 
सा प्यार तुम्हारा ;
मेरे मन को हरा 
हरा कर जाता है ;
जेठ में ये दिखाता है 
नखरे और कार्तिक में 
बेवक़्त बरस जाता है ;
जब जरुरत पड़ती है 
नहीं मिल पाता है ; 
साया धूप ही धूप पुरे 
के पुरे सफर मेँ मिली  
एक दरख़्त ढूंढता मै 
रहा दूर तलक ना कहीं 
भी थोड़ी भी छाँव मिली 
बेमौसम बरसात सा 
प्यार तेरा !

Tuesday, 17 December 2019

बगावत !


बगावत !

तुमसे प्रेम करके मैंने
जितना खुद को बदला है
तुम्हारी मज़बूरियों और 
इच्छाओं के प्रमादी प्रमेय 
के हिसाब से तुम उतना ही 
अनुपातों के नियम को धता 
देकर सिद्ध करती रही कि 
चाहतों के गणित को सही 
सही समझना मेरे बस की 
बात नहीं पर तुम्हे कैसे और  
किन शब्दों बताऊ मैं की 
मैंने समझा भी सही और 
किया भी सही पर तुम अब 
तक स्वीकार नहीं पर पायी 
कि प्रेम में बगावत निहित है !

Monday, 16 December 2019

सांसों की ऊष्मा है !


सांसों की ऊष्मा है !

तुम्हारी सांसो ने 
मेरे कहे एक-एक 
शब्द में ऊष्मा भर दी !

वो सारे शब्द तुम्हारी 
सांसों की ऊष्मा पाकर 
अमर हो गए !

वो शब्द फिर मुझे 
और शब्दों से ज्यादा 
प्रिय हो गए थे !

अब मैं घिसता हूँ  
उन तुम्हारी ऊष्मा 
पाए शब्दों को अपनी
इन दोनों हथेली पर ! 

इस उम्मीद में की 
वो मेरी इन हथेलियों 
में एक नयी भाग्य रेखा 
बनकर उभरेंगे ! 

Sunday, 15 December 2019

बोलो बोलो कौन है वो !


बोलो बोलो कौन है वो , 
कोई चाँद है वो ;
या कोई सूरज है वो !

बोलो बोलो कौन है वो ,
वही राम है वो ;
या फिर कृष्ण है वो !

बोलो बोलो कौन है वो ,
कोई इंसां है वो ;
या फिर ईश है वो !

बोलो बोलो कौन है वो ,
तेरा इश्क़ है वो ;
या फिर प्रेम है वो !

बोलो बोलो कौन है वो ,
कोई है भी या ,
गोया सिर्फ तेरा 
एक ख़्वाब है वो !

Saturday, 14 December 2019

क्या यही प्रेम !


क्या यही प्रेम !

क्या यही प्रेम ?
मैंने देखा उसका चेहरा 
गुलाब के फूल में और  
समझा यही प्रेम है !  
क्या यही प्रेम ?
मैंने सुनी उसकी आवाज़ 
कोयल की कूक में और  
समझा यही प्रेम है !
क्या यही प्रेम ?
मैंने झलक देखी उसकी  
हिरन की चाल में
बसंत के रंगों में 
रहमान के संगीत में 
फिर भी मैं बस यही  
समझा यही प्रेम है ! 
क्या यही प्रेम ?
मैंने पैगम्बरों से जानने 
की कोशिश की कि क्या 
यही प्रेम है ?  
पर पाया कि वो भी 
मुझसे अधिक कुछ 
नहीं जानते प्रेम के बारे 
क्योंकि प्रेम समझने की 
वस्तु है ही नहीं प्रेम तो 
महसूसने की विधा है ! 

Friday, 13 December 2019

मैं हँसता हँसाता हूँ !


 मैं हँसता हँसाता हूँ !

मैं यु ही नहीं आता जाता गुनगुनाता 
इठलाता हँसता और हंसाता हूँ !
वो पल जो साथ तुम्हारे बीतते है  
वो पल ही तो है जो मेरे अन्दर ;
दहकते दह्काते मचलते मचलाते है ! 
कुछ यूँ जैसे तुम बसी हो मेरे अंदर 
एक खुशगवार मौसम बनकर ;
कभी दिसंबर की ठण्ड बनकर 
मेरे साथ रजाई में दुबकी रहती हो ! 
कभी अप्रैल की रंगबिरंगी बसंत 
बहार बनकर रंग बरसाती रहती हो !  
कभी मई और जून की चिलचिलाती 
धुप बनकर झुलसाती रहती हो ! 
तो कभी अगस्त की सावनी फुहार 
बनकर बस भिगोती रहती हो ! 
मैं यु ही नहीं आता जाता गुनगुनाता 
इठलाता हँसता और हंसाता हूँ !

Thursday, 12 December 2019

ख़ामोश चिड़ा !


ख़ामोश चिड़ा !

क्या तुम्हे पता है ?
रोज-रोज चीं -चीं कर
शोर मचाने वाला चिड़ा 
आज इतना खामोश क्यों है ?
क्या तुम्हे पता है ?
रोज-रोज चीं -चीं कर
उड़ने वाला चिड़ा आज इतना 
खामोश क्यों है ? 
क्या किसी ने क़तर दिए है 
इसके फर फर कर उड़ने 
वाले पर ?
क्या तुम्हे पता है ?
रोज-रोज चीं -चीं कर
अपनी चोंच को भर लाने
वाला चिड़ा आज अब तक 
भूखा क्यों है ?
क्या तुम्हे पता है ?
रोज-रोज चीं -चीं कर
अपने सीने में जमी ठण्ड को 
गर्म भाप और गर्म पानी से 
मिटाने वाला चिड़ा आज
इतना खामोश क्यों है ?
शायद तुम्हे पता है पर तुम
कहना नहीं चाहती अपनी 
जुबां से की वो खोज रहा है ? 
अपनी गौरैया को जो आज 
सुबह ही इसे छोड़ कर कहीं  
ओर चली गयी है ?
क्या तुम्हे पता है ?
वो जाते जाते अपने साथ 
इस चिड़े की चीं चीं भी 
अपने साथ ले गयी है !  

Wednesday, 11 December 2019

मेरी चाहत !


मेरी चाहत !

मेरी चाहत 
तुम्हे ऐसे चाहने की     
जैसे चन्द्रमा चाहता है 
बेअंत समंदर को ;

जैसे सूरज की किरण
सीप के दिल को चाहे ;
जैसे खुशबु को हवा रंग 
से हटकर चाहती है ;

जैसे कोई शिल्पकार 
अपने विश्वास को एक 
पत्थर में भी देख लेता है ;
   
और उस पत्थर को 
तराश कर वो अपने 
ईश को पा भी लेता है ;

जिस बेइन्तेहाई से 
ऑंखें अपने ख्वाबों 
को चाहती है ;

जैसे छालों से भरे पांव 
बारिश की दुआ मांगते 
रहते है ;

मेरी चाहत 
भी ठीक वैसे ही चाहती है  
एक तुम्हे चाहने को !

Tuesday, 10 December 2019

एहसासों की जरुरत !


एहसासों की जरुरत !

सोचा था मेरे एहसास भी 
तेरी सांसो की जरुरत हो 
जाएंगे ;   
सोचा था तुझे भी एक दिन 
मेरी मुझ सी ही जरुरत हो 
जाएगी ; 
सोचा था तुम्हारी भी धड़कने 
तुम्हे हर शाम-ओ-सहर परेशान 
कर देंगी ;
सोचा था तेरे दिल को भी मेरे 
दिल की मुझ सी ही आदत हो 
जाएगी ; 
सोचा था मेरी बातें भी तेरी 
नींद की हर करवट सी हो 
जाएगी ;
सोचा था हर मुलाकात पर  
तुम खुद को मेरे पास ही 
भूल आओगी ;
सोचा था मेरा साथ तेरी 
ज़िन्दगी की इबादत सी 
हो जाएगी ;
सोचा था तुझे पास लाने 
की जो तमन्ना बसी है 
मेरी  इस रूह में ;
सोचा था वो मेरी तमन्ना 
ही तेरी एक जिद्दी हसरत 
सी हो जाएगी ;
लेकिन मैंने ये नहीं सोचा था    
कि ये सब बस एक मैंने ही 
तो सोचा था !

Monday, 9 December 2019

बेइंतेहा मोहब्बत !


बेइंतेहा मोहब्बत !

तेरे हर एक जज्बात से 
बेइंतेहा मोहब्बत की है  
तेरे हर एक एहसास से 
बेइंतेहा मोहब्बत की है
तेरी हर एक याद से  
बेइंतेहा मोहब्बत की है
जब जब तुमने याद किया है 
मैंने हर एक उस लम्हे से
बेइंतेहा मोहब्बत की है
जिसमे हो एक सिर्फ तेरी
और एक सिर्फ मेरी बात  
मैंने तेरी उस एक जात से 
भी बेइंतेहा मोहब्बत की है
तेरे हर एक इंतज़ार से भी 
मैंने उतनी ही सिद्दत से 
बेइंतेहा मोहब्बत की है
तू मेरी है सिर्फ मेरी मैंने 
तेरे दिए उस भरोसे से भी 
बेइंतेहा मोहब्बत की है

Sunday, 8 December 2019

नया रूप धरा है !


नया रूप धरा है !

सूरज तो वहीं सदियों पुराना है , 
धरा ने आज नया रूप धरा है ;
लगता है आज फिर सांझ ढले , 
सूरज धरा से बतियाने वाला है !
  
सूरज तो वहीं सदियों पुराना है ,
धरा ने आज नया रूप धरा है ;
लगता है भोर भये आज फिर से , 
सूरज धरा के मन को भाया है !

सूरज तो वहीं सदियों पुराना है , 
धरा ने आज नया रूप धरा है ;
सांझ ढले सबने उसे बिसराया है ,  
धरा ने तब सूरज को गले लगाया है !

सूरज तो वहीं सदियों पुराना है , 
धरा ने आज नया रूप धरा है ;
जाने क्यों मुझे ऐसा लगता है ,
दोनों का मिलन होने वाला है !

सूरज तो वहीं सदियों पुराना है ,
धरा ने आज नया रूप धरा है ;
शायद धरा की कोख भर आयी है , 
जन्म बसंत बहार लेने वाला है !

Saturday, 7 December 2019

मेरी रात !


मेरी रात ! 

तेरी आँख से जब ख़ुद को देखा 
तो देखते ही मुस्कुराईं मेरी रात ;

तेरी याद का जब काजल पहना 
तो पहनते ही शर्मा गयी रात ;

जिस के इश्क़ में पागल नैना 
उसी के इश्क़ में पगलाई रात ;

बिस्तर से जब उठी सिसकारी 
उठते ही यूँ खिलखिलाई रात ;

सुबह ने ज्योँ ही ओट से देखा
देखते ही देखते बीत गई रात !

Friday, 6 December 2019

सब ज्ञात है तुझे !


सब ज्ञात है तुझे ! 

तेरे दो बूँद आंसू मेरी  
वेदनाओँ का समंदर है :
ये ज्ञात है तुझे ! 
तेरा मुस्कुराना मेरी 
सृष्टि का चलना है ; 
ये भी ज्ञात है तुझे !
मेरे आंगन में तुम्हारा 
उपस्थित होना ही मेरे 
भाग्य का उदय हो ना है ;
ये भी ज्ञात है तुझे !
तेरे ह्रदय में मेरा ना 
ही मेरी सम्पूर्णता है ; 
ये भी ज्ञात तुझे !
फिर किन्यु तुम अब 
भी इतनी दूर हो मुझसे 
क्यों ये ज्ञात नहीं मुझे ! 
कम से कम ये तो मेरे 
पास आकर बतला दो 
तुम मुझे !

Thursday, 5 December 2019

निशा का प्याला !


निशा का प्याला !

जिस निशा का प्याला पूरी 
की पूरी रात कलानिधि के 
निचे पड़ा रहने के बाद भी   
हयात के मधु से नहीं भर 
पाता है ;
वो निशा ही उस मधु का 
सही सही अंशदान समझ 
सकती है ;
क्योंकि उस निशा के प्याले 
से उतर चुकी होती है कलानिधि 
की कलई भी ;
तब उस प्याले में पड़ी उस  
रात की कल्पना कितनी 
कड़वी हो जाती है ; 
इस कड़वाहट का स्वाद तो  
केवल वो ही समझ सकता है 
जो उस निशा को तहे दिल से 
चाहने का साहस करता है ; 
जबकि उसे ये भी नहीं पता होता 
कि कब तक उसे निशा के प्याले 
में भरी कड़वी कल्पना को पीते 
रहना पड़ेगा !

Wednesday, 4 December 2019

पुरुष !


पुरुष ना ही बलात्कार करते हैं ,
पुरुष ना ही अत्याचार करते हैं ;

पुरुष ना ही लड़कियों पर टूटते हैं ,
पुरुष ना ही किसी की आबरू लूटते है ;

पुरुष सदा ही दिलों को जीतते है ,
पुरुष सदा ही स्त्रियों को जिताते है ; 

पुरुष के साये में बीवी बेटी बहन पलती हैं ,
पुरुष की सांसें उन्ही की दुआओं से चलती है ;

पुरुष नहीं फेंकते तेज़ाब किसी के देह पर ,
पुरुष अपनी प्रीत के प्रेम में फनाह हो जाते हैं ;

पुरुष का देह की मंडियों से कोई सरोकार नही होता ,
पुरुष कभी दहेज़ के लिए उन पर हाथ नहीं उठता ;

पुरुष बच्चियों के नाजुक बदन से नहीं खेलते ,
पुरुष बच्चियों को कलियों की तरह सहेजते है ;

का पुरुष ही बलात्कार करते हैं ,
का पुरुष ही अत्याचार करते हैं ;

क्योंकि पुरुष अव्यक्त से परे हैं ;
और पुरुष से परे कुछ भी नहीं है !

Tuesday, 3 December 2019

वो कैसी लगती है !


वो कैसी लगती है !

वो और उसकी गहरी ऑंखें
कितनी प्यारी लगती है ;
बड़ी-बड़ी वो ऑंखें बिलकुल 
छुरी और कटारी लगती है ;
जुल्फें उसकी तो जैसे सावन 
की उमड़ती घटायें लगती है ; 
होंठ उसके तो जैसे अभी अभी 
खिले दो सुर्ख गुलाब लगते है ; 
रंग उसका जैसे बिलकुल सुनहरी 
धुप की किरण जैसा ही लगता है ; 
चेहरा उसका तो जैसे पूर्णमासी 
का पूरा पूरा महताब लगता है ;
जिसकी सांसों की खुशबू तो जानो 
महकते फूलों पर भी भारी पड़ती है ; 
उसकी वो सच्ची सच्ची ऑंखें तो 
सच में बहुत ही प्यारी लगती है ;
चाल उसकी हिरन के जैसी तो 
स्वर कोयल की तान सा लगता है ; 
अंग अंग उसका मदिरालय सा जो 
देता मेरे जीवन को नया प्राण है ! 

Monday, 2 December 2019

सिर्फ एक तुम !


सिर्फ एक तुम !

मेरे कानों में बजता
धरती का कोई राग 
ऐसा नहीं जिसमे तुम 
बज ना रही हो ;
कोई ऐसी नदी नहीं 
जो तुमसे होकर नहीं
गुजरती हो ;
बारिश की कोई ऐसी 
बूँद नहीं जिसमे तुम 
नहीं होती हो ;
धरती की आखरी छोर
से बहकर जो हवा मुझे 
छूने को आती हो ;
वो हवा भी तो तुम्हारा  
ही पैगाम लेकर मुझ 
तक आती है ;
फूल कहीं भी खिले 
प्यार चाहे कहीं भी      
प्रकट हो ;
इन सब में मैं एक 
सिर्फ तुम्हें ही तो 
पाता हूँ !   

Sunday, 1 December 2019

तेरा मेरा रिश्ता !


तेरा मेरा रिश्ता !

तेरा मेरा रिश्ता है 
परे झूठ की समस्त 
परिभाषाओं से ;
गुनगुनी धुप सा 
मदमस्त अलसाया सा 
नीले खुले अम्बर सा ;
उन्मुक्त विस्मृत 
धुला धुला सा 
बहती धारा सा ; 
निर्द्वंद निश्छल 
अद्वैत अल्हड़ सा
कौंधती बिजली सा ;
चपल चंचल रौशन 
बहती बयार सा 
शीतल सुगन्धित 
सदा दुलारता सा ;
तेरा मेरा रिश्ता है 
परे झूठ की समस्त 
परिभाषाओं से ! 

Saturday, 30 November 2019

चले चलो !


चले चलो !

तंहा मेरे कदम अब उठते नहीं , 
साथ तुम मेरे अब चले चलो ; 
नींद भी मुझे अब आ रही है ,
ख़्वाब मेरे तुम अब पलो पलो ;
महबूबा मेरी बहुत हसीन है ,
चाँद तुम अब जलो जलो ;
हो वो अब मेरे इतने करीब , 
बर्फ तुम अब गलो गलो ;
देखता हूँ अब मैं एक तुम्हे , 
प्रीत तुम मेरी बढ़ी चलो ;
जुड़ा अब कभी ना होंगे हम ,
ए वक़्त तुम अब टलो टलो ;
दूरियां अब सिमटने वाली है ,
हसरतों तुम अब फूलो फलो ;
प्रेम दीप 'प्रखर' अब जला रहा ; 
प्रीत 'रज्ज" मेरी अब मिलो मिलो !   

Friday, 29 November 2019

ऐ ज़िन्दगी !


ऐ ज़िन्दगी !

ऐ ज़िन्दगी सुन 
इतनी सी गुज़ारिश 
तू मेरी ! 

अब कहीं दूर ना जा 
कर दे रोशन इन सियाह 
रातों को तू मेरी !

और कर दे शीतल से 
ठन्डे मेरे तपते दिनों को 
तू मेरे ! 

फिर आकर पास मेरे 
ले ले अपने आगोश 
के घेरे में तू मुझे !  

और ले चल इस दुनिया 
से बिलकुल दूर तू 
मुझे ! 

ऐ ज़िन्दगी आ मेरी 
आँखों में बस जा और 
अपनी आँखों में बसा ले 
फिर से तू मुझे !

मुझसे दूर ना जाना 
इतनी सी गुज़ारिश है
तुझ से मेरी !

Thursday, 28 November 2019

तृप्ति !


तृप्ति !

तुम्हारी तृप्ति मेरी ,
अभिव्यक्ति में छुपी है ;
मेरी तृप्ति एक तुम्हारे ,
ही सानिध्य में छुपी है ;
तुम्हे तुम्हारी तृप्ति सुबह , 
आंख खोलते ही मिल जाती है ;
मेरी तृप्ति रातों में करवट ,
बदल-बदल कर जगती है ; 
तुम्हे तुम्हारी तृप्ति मेरी ,
महसूसियत से मिलती है ; 
मेरी तृप्ति तुम्हारे पीछे-पीछे ,
दौड़ती भागती बैरंग लौट आती है ; 
तुम्हारी तृप्ति तुम्हारे चारों ओर ,
फैले शोर के निचे दब जाती है ;  
मेरी तृप्ति तुम्हारी दहलीज़ पर ,
तुम्हारा दरवाज़ा खटखटाती है ;
लेकिन मैंने तो कहीं पढ़ा है ,  
तृप्ति तो केवल तृप्ति होती है ;
फिर क्यों तुम्हारी तृप्ति और मेरी 
तृप्ति अलग अलग जान पड़ती है !

Wednesday, 27 November 2019

खारी-खारी बूँदें !


खारी-खारी बूँदें ! 

तुम्हारे छूने भर से नदी बन 
तुम्हारे ही रगों में बहने को 
आतुर हो उठती हूँ ;

बदले में कुछ खारी-खारी बूंदें  
मेरी शुष्क हथेलियों पर तुम  
रख देते हो ; 

वो बूंदें मेरी इन हथेलिओं पर
चमकती हैं तब तक जब तक 
तुम मेरे साथ होते हो ;

तुम्हारे दूर जाते ही खारी-खारी  
बूंदें भी जैसे लुप्त हो जाती है 
ठीक उस तरह ;

जैसे सूरज के अवसान पर 
चारों ओर छायी मृगमरीचिका 
लुप्त हो जाती है ;

तब मेरी आकंठ प्यास को 
तुम्हारी वो कुछ खारी-खारी 
बूंदें भी अमूल्य लगने लगती है !

Tuesday, 26 November 2019

एहसास !


एहसास ! 

मेरे खुश होने के लिए
एक बस तुम्हारा यूँ  
मेरे पास होना काफी है !

तुम्हारा यूँ मेरे पास होना 
एहसास कई ख्वाहिशों  
के पूरा होने सा होता है !

तुम्हारा यूँ मेरे पास होना
अमावस की रात में भी जैसे 
चाँद के दिख जाने सा एहसास 
देता है !

तुम्हारा यूँ मेरे पास होना
यूँ बरबस ही मेरे लबों को 
मुस्कुराने की वजह दे 
जाता है !
  
और तो और मेरी आँखों को 
भी बेवज़ह बोल उठने का
मौका मिल जाता है !

मेरे खुश होने के लिए 
मेरे दिल ने तुझ से कहाँ 
कुछ ज्यादा माँगा है !

Monday, 25 November 2019

तुम्हारा आलिंगन !


तुम्हारा आलिंगन !

मैं जब जब होती हूँ 
तुम्हारे आलिंगन में
तो ये पुरवाई हवा भी 
कहाँ सिर्फ हवा रहती है 
वो तो जैसे मेरी साँस 
सी बन मेरे रगो में 
बहने लगती है ;
हर एक गुल में जैसे 
एक सिर्फ तुम्हारा ही 
तो चेहरा दिखाई देने 
लगता है ;
मन उड़ता है कुछ यूँ 
ख़ुश होकर कि जैसे 
इच्छाओं के भी पर 
लग गए है ;
और रूह तो मानो
स्वक्छंद तितली का
रूप धर उड़ने लगती है ;
मैं जब जब होती हूँ 
तम्हारे आलिंगन में 
तो कितना कुछ स्वतः 
ही घटित होने लगता है !

Sunday, 24 November 2019

मन मंदिर !


मन मंदिर !

मन के इसी मंदिर में
शिवाया और भागीरथी
बहती है ;  
मन के इसी मंदिर में
दुनिया के सभी दुर्लभ
पुष्प भी खिलते है ; 
मन के इसी मंदिर में
सह्दुल पंछी भी मौजूद  
रहते है ; 
मन के इसी मंदिर में
नौ रंग के पंखों वाली 
पिट्टा चिड़िया भी 
चहचहाती है ;  
मन के इसी मंदिर में
सृष्टि की सारी कराहें 
बसती है ;  
मन के इसी मंदिर में 
खुशियों की घण्टिया 
भी बजती है ;
मन के इसी मंदिर में 
चीर प्रतीक्षित प्रेम भी 
प्रकट होता है !

Saturday, 23 November 2019

वही तो है !


वही तो है !

वो जो झील को 
अपनी दोनों आँखों 
में रखती है ; 
वो ही तो गुलाबों
को अपने दोनों 
रूख़सारों पर 
रखती है ;
वो जो अपनी 
ज़ुल्फ़ों में छुपा 
कर कहीं शाम 
को रखती है ; 
वो वही है जो 
सबसे छुपाकर 
मुझे भी अपने 
दिल में कहीं 
रखती है ;
वो वही है जो 
अपने होंठों पर 
ना ना और अपने 
दिल में हाँ हाँ 
रखती है !

Friday, 22 November 2019

वहम !


वहम !

सुनो तुम चुप-चुप 
सी ना रहा करो 
मुझे वहम सा हो 
जाता है ; 
कहीं तुम ख़फ़ा तो 
नहीं हो मुझे ये वहम 
सा हो जाता है ; 
मुझे तुम सदा 
चहकती हुई ही 
अच्छी लगती हो ; 
तुम मुझे यूँ ही 
डाँटती डपटती ही 
अच्छी लगती हो ;
कभी मज़ाक में तो 
कभी शरारत में ही 
मगर तुम मुझे बस 
हंसती हुई ही अच्छी 
लगती हो ;
सुनो चुप-चुप सी   
ना रहा करो मुझे 
वहम सा हो जाता है !

Thursday, 21 November 2019

मैं सिर्फ तुमको चाहूंगा !


मैं सिर्फ तुमको चाहूंगा !

मैं एक सिर्फ तुम को चाहूंगा ,
सुख के मौसम में राहत 
भरा स्पर्श बन कर !
मैं एक सिर्फ तुम को चाहूंगा ,
दुःख के मौसम में हंसी का 
ठहाका बन कर !
मैं एक सिर्फ तुम को चाहूंगा ,
भरी दुपहरी में तुम्हारे सर 
पर छांव का छाता बन कर !
मैं एक सिर्फ तुम को चाहूंगा ,
थकन भरे माहौल में तुम्हारे
देह का आरामदेह बिछौना 
बन कर !
मैं एक सिर्फ तुम को चाहूंगा ,
विरह की वेदना में मिलन
की आस बनकर !        
मैं एक सिर्फ तुम को चाहूंगा ,
साथ तुम्हारे तुम्हारी ही 
परछाई बन कर !   

Wednesday, 20 November 2019

रात की ये कालिमा !


क्यों रात की ये कालिमा है , 
क्यों किरणों से तपता दिन है ; 

क्यों आँखों से आसमां ओझल है , 
क्यों हवाएँ सूखी और मद्धम है ; 

क्यों ये लम्हें दर-दर बिखरे है ,
क्यों यादों के प्रतिबिंब धुँधले है ;  

क्यों आहें कराहें हो रही है ,
क्यों दिन बीत ही नहीं रहे है ;

क्यों एक नई सुबह की ख़्वाहिश है ,
क्यों अब चुप रहना भी मुश्किल है ;

क्यों अब अकेले चलते रहना भारी है , 
क्यों भटके-भटके से ये पदचिन्ह है ;

क्यों अब सारी तस्वीरें चुभती सी है ,
क्यों सिमट रहा जीवन प्रतिदिन है ; 

क्यों एक सिर्फ तेरे साथ ना होने से 
कितने कुछ पर क्यों लग रहा है !   

Tuesday, 19 November 2019

तेरे प्यार में पागल हूँ !


तेरे हर दर्द को मैं अब , 
अपना दर्द समझता हूँ ;

तेरी हर खता को मैं अब , 
अपनी ही खता समझता हूँ ; 

तेरे प्यार में मैं पागल हूँ अब , 
इसलिए तो मज़बूरियों को समझता हूँ ;   

खुश रखूं तुझे सदा मैं अब ,
यही अब दिल से चाहता हूँ ;

तेरी हर एक आह को मैं अब , 
बस एक सिर्फ दुआ मानता हूँ !  

Sunday, 17 November 2019

तुम मेरी हो !


तुम मेरी हो !

तुम आँखों में देखो 
मेरी और खुद को 
इन्ही में खो जाने दो ;

तुम बाँहों में आओ 
मेरी और खुद को 
बहक जाने दो ;

तुम दिल में आओ 
मेरे और खुद को इसी 
में बस जाने दो ;

तुम मेरी हो और 
मेरी ही रहोगी सदा 
आज सभी से ये कह दो ;
  
तुम अब कुछ इस 
कदर चाहो मुझे और 
खुद को मुझ पर फनाह 
हो जाने दो ;

प्रखर है बस एक 
तुम्हारा वो चाहेगा 
बस एक तुम्ही को !

एक वो ही तो है !


एक वो ही तो है !

ना शिकायतें करती है 
ना ही गिला करती है

हाँ एक वो ही तो है 
जो मुझे सिर्फ प्यार 
किया  करती है

एक वो ही तो है 
जो एक मेरे लिए 
ही जिया करती है 

एक मुझ से ही तो 
बातें किया करती है

कभी हंसा करती है 
कभी रोया करती है

वो जो भी करती है 
बस बेपनाह करती है

कभी चुपके-चुपके 
बिना आवाज़ किये  
ही मेरे पीछे पीछे 
आ जाया करती है

जब मैं रूठा करता हूँ 
उस से वो मेरे आने का 
तब और इंतज़ार करती है

ना शिकायतें करती है 
ना ही गिला करती है !

Saturday, 16 November 2019

रात आती है !


रात आती है !

मेरी रातें तो 
गुमनाम होती है ; 
दिन मेरे लेकिन 
तेरे नाम होते है ; 
मैं जीता हूँ कुछ 
इस तरह की मेरा 
हर एक लम्हा तेरे 
नाम होता है ; 
मुझे सुलाने के 
खातिर रात तो 
आती है ; 
मगर मैं सो नहीं 
पाता हूँ पर रात 
सो जाती है ;
पूछने पर दिल 
से मेरे आवाज़ 
ये आती है ; 
आज याद करो 
उसे जो तुम्हारी 
नींद चुराती है ; 
ये सिलसिला तो 
सालों से चल रहा है ;
रात आती है और 
आकर चली जाती है ! 

Friday, 15 November 2019

लौटाती है बचपन !



वो जो आज भी खुद में सहेजे है 
हम सब का सूंदर सा बचपन ;

वो जो हम सब को प्रेरित करती है 
जीने को अपना सूंदर सा बचपन ; 

वो जो आज भी अपने व्यवहार में 
शामिल रखती है सूंदर सा बचपन ;

वो जो सहेज कर तुम्हारा तुम अपनी 
कोख में तुम्हे लौटती है सूंदर सा बचपन ;

वो जिसकी बदौलत आज तुम्हारी अंगुली 
पकड़कर कर चल रहा है तुम्हारा बचपन ;

वो जिसने दिया है तुम्हे ये मौका की 
तुम जी सको फिर से अपना वो बचपन ;

वो जो हमें कई बार मौका देती है
धूम धाम से मनाने को अपना बचपन ;

वो जिसे हम सब माँ कहते है 
वो ही तो है जो लौटाती है बचपन !

Thursday, 14 November 2019

औरत सुंदर है !


औरत सुंदर है
उसके बालो से ?
औरत सुंदर है
उसकी आंखों से ?
औरत सुंदर है 
उसके नैन नक्श से ?
औरत सुंदर है
उसके रूप रंग से ?
औरत सुंदर है
उसके लाल होठ से ?
औरत सुंदर है
उसके आकार प्रकार से ?
औरत सुंदर है 
उसके डिल डौल से ?
औरत सुंदर है 
उसके वक्ष से ?
औरत सुंदर है
उस चाल चलन से ?
औरत सुंदर है
उसकी शर्म हया से ?
औरत सुंदर है
उसके यौवन से ?
ना ना ना ना
औरत सुंदर है
औरत सुंदर थी
औरत सुंदर रहेगी
सदा सिर्फ उसके
एक औरत होने से
क्योंकि औरत का
मतलब है जो
औरौ में खुद को
रत कर ले !

Wednesday, 13 November 2019

हरी कोख का आनंद !


हरी कोख का आनंद !

तुम्हे चाहने के लिए 
अपनी सांसों से तुम्हारे 
विकल ह्रदय को तृप्त 
रखना चाहता हूँ !

तुम्हारे ही भाव मेरे 
लफ़्ज़ों में उतरते रहें सदा 
इसलिए तुम्हारी रज्ज से 
जुड़े रहना चाहता हूँ !

भविष्य में तुम्हारे भाव 
और भी सूंदर हों इसलिए
मैं अब तुम्हारी रूह में 
उतरना चाहता हूँ !

तुम्हारी आँखों में उतर 
आये हरी हुई कोख का 
आनंद इसलिए तुम्हारी 
कोख को सदा सींचते  
रहना चाहता हूँ !

तुम्हारे होंठ सदा यूँ ही 
गुलाबी रस भरे बने रहे 
इसलिए मेरे शहद रूपी 
आखरों को सदैव तुम्हारे 
होंठों पर रखना चाहता हूँ !

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !