Saturday, 28 December 2019

मैं होता हूँ वहां !


कुछ भी हाँ कुछ भी कहाँ होता है वहाँ , 
जब तुम मेरे साथ नहीं होती हो वहाँ ;
  
सिर्फ सन्नाटें की दीवारें होती है वहाँ ,  
और बेक़रारियों की छत होती है वहाँ ;

बेताबियों की बेतरतीब जमीं होती है वहाँ ,  
हाँ हरी परत तो बिल्कुल नहीं होती है वहाँ ; 

आसमान का नीला आंचल नहीं होता है वहाँ ,  
हवाओं के बीच कंही झूल रहा होता हूँ मैं वहाँ ;

तुम और तुम्हारी बेसुध यादें होती है वहाँ ,  
तेज़-तेज़ दौड़ती हुई धड़कने होती है वहाँ ;
   
मेरे काबू से बहार मेरी ही सांसें होती है वहाँ , 
और मैं एकदम तन्हा अकेला होता हूँ वहाँ ; 

तन्हाई की जुबान पर मेरा नाम होता है वहाँ , 
तब भी मेरी जुबान पर तेरा नाम होता है वहाँ ;

खुद-ब-खुद से अजब सी तकरार होती है वहाँ ,
और टूटता बिखरता हुआ सा होता हूँ मैं वहाँ ;

तारो की टिमटिमाहट भी जलती बुझती है वहाँ , 
हाँ मेरी तमाम उलझने भी हैरान होती है वहाँ ;

मेरी सारी संवेदनाएं बिलकुल बेबस होती है वहाँ ,
फिर भी एक तुम्हे अपने सबसे करीब पता हूँ वहाँ ; 

तुम्हें अपने पास बुलाने की उम्मीद में प्रखर होता है वहाँ ; 
तब ही तो तुम्हे तुम्हारे इंतज़ार में बैठा मिलता हूँ मैं वहां !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !