क्या यही प्रेम !
क्या यही प्रेम ?
मैंने देखा उसका चेहरा
गुलाब के फूल में और
समझा यही प्रेम है !
क्या यही प्रेम ?
मैंने सुनी उसकी आवाज़
कोयल की कूक में और
समझा यही प्रेम है !
क्या यही प्रेम ?
मैंने झलक देखी उसकी
हिरन की चाल में
बसंत के रंगों में
रहमान के संगीत में
फिर भी मैं बस यही
समझा यही प्रेम है !
क्या यही प्रेम ?
मैंने पैगम्बरों से जानने
की कोशिश की कि क्या
यही प्रेम है ?
पर पाया कि वो भी
मुझसे अधिक कुछ
नहीं जानते प्रेम के बारे
क्योंकि प्रेम समझने की
वस्तु है ही नहीं प्रेम तो
महसूसने की विधा है !
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