Saturday, 14 December 2019

क्या यही प्रेम !


क्या यही प्रेम !

क्या यही प्रेम ?
मैंने देखा उसका चेहरा 
गुलाब के फूल में और  
समझा यही प्रेम है !  
क्या यही प्रेम ?
मैंने सुनी उसकी आवाज़ 
कोयल की कूक में और  
समझा यही प्रेम है !
क्या यही प्रेम ?
मैंने झलक देखी उसकी  
हिरन की चाल में
बसंत के रंगों में 
रहमान के संगीत में 
फिर भी मैं बस यही  
समझा यही प्रेम है ! 
क्या यही प्रेम ?
मैंने पैगम्बरों से जानने 
की कोशिश की कि क्या 
यही प्रेम है ?  
पर पाया कि वो भी 
मुझसे अधिक कुछ 
नहीं जानते प्रेम के बारे 
क्योंकि प्रेम समझने की 
वस्तु है ही नहीं प्रेम तो 
महसूसने की विधा है ! 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !