Monday, 2 December 2019

सिर्फ एक तुम !


सिर्फ एक तुम !

मेरे कानों में बजता
धरती का कोई राग 
ऐसा नहीं जिसमे तुम 
बज ना रही हो ;
कोई ऐसी नदी नहीं 
जो तुमसे होकर नहीं
गुजरती हो ;
बारिश की कोई ऐसी 
बूँद नहीं जिसमे तुम 
नहीं होती हो ;
धरती की आखरी छोर
से बहकर जो हवा मुझे 
छूने को आती हो ;
वो हवा भी तो तुम्हारा  
ही पैगाम लेकर मुझ 
तक आती है ;
फूल कहीं भी खिले 
प्यार चाहे कहीं भी      
प्रकट हो ;
इन सब में मैं एक 
सिर्फ तुम्हें ही तो 
पाता हूँ !   

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !