Thursday, 12 December 2019

ख़ामोश चिड़ा !


ख़ामोश चिड़ा !

क्या तुम्हे पता है ?
रोज-रोज चीं -चीं कर
शोर मचाने वाला चिड़ा 
आज इतना खामोश क्यों है ?
क्या तुम्हे पता है ?
रोज-रोज चीं -चीं कर
उड़ने वाला चिड़ा आज इतना 
खामोश क्यों है ? 
क्या किसी ने क़तर दिए है 
इसके फर फर कर उड़ने 
वाले पर ?
क्या तुम्हे पता है ?
रोज-रोज चीं -चीं कर
अपनी चोंच को भर लाने
वाला चिड़ा आज अब तक 
भूखा क्यों है ?
क्या तुम्हे पता है ?
रोज-रोज चीं -चीं कर
अपने सीने में जमी ठण्ड को 
गर्म भाप और गर्म पानी से 
मिटाने वाला चिड़ा आज
इतना खामोश क्यों है ?
शायद तुम्हे पता है पर तुम
कहना नहीं चाहती अपनी 
जुबां से की वो खोज रहा है ? 
अपनी गौरैया को जो आज 
सुबह ही इसे छोड़ कर कहीं  
ओर चली गयी है ?
क्या तुम्हे पता है ?
वो जाते जाते अपने साथ 
इस चिड़े की चीं चीं भी 
अपने साथ ले गयी है !  

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !