Sunday, 29 December 2019

चाह !


चाह !

अधर तेरे जलते 
दिये से ;
लफ्ज़ तेरे जलती 
बाती से ;
मुस्कान तेरी उसकी 
लौ सी ;
इन्हे निहारूँ तो छूने 
की चाह ;
छु लूँ तो चुम लेने 
की चाह ;
चुम लूँ तो जल जाने 
की चाह ;
जलने लगूँ तो फ़नाह  
होने की चाह ;
फ़नाह हो जाऊँ तो फिर से 
मिलने की चाह ;
अधर तेरे जलते 
दिये से !   

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !