पुरुष ना ही बलात्कार करते हैं ,
पुरुष ना ही अत्याचार करते हैं ;
पुरुष ना ही लड़कियों पर टूटते हैं ,
पुरुष ना ही किसी की आबरू लूटते है ;
पुरुष सदा ही दिलों को जीतते है ,
पुरुष सदा ही स्त्रियों को जिताते है ;
पुरुष के साये में बीवी बेटी बहन पलती हैं ,
पुरुष की सांसें उन्ही की दुआओं से चलती है ;
पुरुष नहीं फेंकते तेज़ाब किसी के देह पर ,
पुरुष अपनी प्रीत के प्रेम में फनाह हो जाते हैं ;
पुरुष का देह की मंडियों से कोई सरोकार नही होता ,
पुरुष कभी दहेज़ के लिए उन पर हाथ नहीं उठता ;
पुरुष बच्चियों के नाजुक बदन से नहीं खेलते ,
पुरुष बच्चियों को कलियों की तरह सहेजते है ;
का पुरुष ही बलात्कार करते हैं ,
का पुरुष ही अत्याचार करते हैं ;
क्योंकि पुरुष अव्यक्त से परे हैं ;
और पुरुष से परे कुछ भी नहीं है !
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