Friday, 13 December 2019

मैं हँसता हँसाता हूँ !


 मैं हँसता हँसाता हूँ !

मैं यु ही नहीं आता जाता गुनगुनाता 
इठलाता हँसता और हंसाता हूँ !
वो पल जो साथ तुम्हारे बीतते है  
वो पल ही तो है जो मेरे अन्दर ;
दहकते दह्काते मचलते मचलाते है ! 
कुछ यूँ जैसे तुम बसी हो मेरे अंदर 
एक खुशगवार मौसम बनकर ;
कभी दिसंबर की ठण्ड बनकर 
मेरे साथ रजाई में दुबकी रहती हो ! 
कभी अप्रैल की रंगबिरंगी बसंत 
बहार बनकर रंग बरसाती रहती हो !  
कभी मई और जून की चिलचिलाती 
धुप बनकर झुलसाती रहती हो ! 
तो कभी अगस्त की सावनी फुहार 
बनकर बस भिगोती रहती हो ! 
मैं यु ही नहीं आता जाता गुनगुनाता 
इठलाता हँसता और हंसाता हूँ !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !