Tuesday, 3 December 2019

वो कैसी लगती है !


वो कैसी लगती है !

वो और उसकी गहरी ऑंखें
कितनी प्यारी लगती है ;
बड़ी-बड़ी वो ऑंखें बिलकुल 
छुरी और कटारी लगती है ;
जुल्फें उसकी तो जैसे सावन 
की उमड़ती घटायें लगती है ; 
होंठ उसके तो जैसे अभी अभी 
खिले दो सुर्ख गुलाब लगते है ; 
रंग उसका जैसे बिलकुल सुनहरी 
धुप की किरण जैसा ही लगता है ; 
चेहरा उसका तो जैसे पूर्णमासी 
का पूरा पूरा महताब लगता है ;
जिसकी सांसों की खुशबू तो जानो 
महकते फूलों पर भी भारी पड़ती है ; 
उसकी वो सच्ची सच्ची ऑंखें तो 
सच में बहुत ही प्यारी लगती है ;
चाल उसकी हिरन के जैसी तो 
स्वर कोयल की तान सा लगता है ; 
अंग अंग उसका मदिरालय सा जो 
देता मेरे जीवन को नया प्राण है ! 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !