Tuesday, 17 December 2019

बगावत !


बगावत !

तुमसे प्रेम करके मैंने
जितना खुद को बदला है
तुम्हारी मज़बूरियों और 
इच्छाओं के प्रमादी प्रमेय 
के हिसाब से तुम उतना ही 
अनुपातों के नियम को धता 
देकर सिद्ध करती रही कि 
चाहतों के गणित को सही 
सही समझना मेरे बस की 
बात नहीं पर तुम्हे कैसे और  
किन शब्दों बताऊ मैं की 
मैंने समझा भी सही और 
किया भी सही पर तुम अब 
तक स्वीकार नहीं पर पायी 
कि प्रेम में बगावत निहित है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !