मुट्ठी में रख लूंगा !
सोचा था मैंने
इस मेरी मुट्ठी में
संभाल कर और
सबसे छुपा कर
रख लूंगा मैं तुम्हें !
बड़े जतन से
बंद की थी ये
मुट्ठी मैंने रख
कर यु अंदर तुम्हें !
पर न जाने कैसे
और कब फिसल
कर मेरी मुट्ठी से यूँ
बीतते इस वर्ष की
भांति आगे बढ़ गई तू !
सूखी रेत की किरकिरी
की तरह मेरी इस हस्ती
में रड़कती रह गयी तू !
अब जब देखता हूँ
खुद की मुट्ठी तो आँखें
मेरी यु ही बरबस समंदर
हुए जाती है !
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