Tuesday, 31 December 2019

बंद मुट्ठी !


मुट्ठी में रख लूंगा !

सोचा था मैंने 
इस मेरी मुट्ठी में  
संभाल कर और  
सबसे छुपा कर 
रख लूंगा मैं तुम्हें ! 

बड़े जतन से 
बंद की थी ये 
मुट्ठी मैंने रख 
कर यु अंदर तुम्हें !

पर न जाने कैसे 
और कब फिसल  
कर मेरी मुट्ठी से यूँ  
बीतते इस वर्ष की 
भांति आगे बढ़ गई तू ! 
  
सूखी रेत की किरकिरी 
की तरह मेरी इस हस्ती 
में रड़कती रह गयी तू !

अब जब देखता हूँ  
खुद की मुट्ठी तो आँखें 
मेरी यु ही बरबस समंदर 
हुए जाती है ! 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !