Thursday, 5 December 2019

निशा का प्याला !


निशा का प्याला !

जिस निशा का प्याला पूरी 
की पूरी रात कलानिधि के 
निचे पड़ा रहने के बाद भी   
हयात के मधु से नहीं भर 
पाता है ;
वो निशा ही उस मधु का 
सही सही अंशदान समझ 
सकती है ;
क्योंकि उस निशा के प्याले 
से उतर चुकी होती है कलानिधि 
की कलई भी ;
तब उस प्याले में पड़ी उस  
रात की कल्पना कितनी 
कड़वी हो जाती है ; 
इस कड़वाहट का स्वाद तो  
केवल वो ही समझ सकता है 
जो उस निशा को तहे दिल से 
चाहने का साहस करता है ; 
जबकि उसे ये भी नहीं पता होता 
कि कब तक उसे निशा के प्याले 
में भरी कड़वी कल्पना को पीते 
रहना पड़ेगा !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !