Friday, 22 November 2019

वहम !


वहम !

सुनो तुम चुप-चुप 
सी ना रहा करो 
मुझे वहम सा हो 
जाता है ; 
कहीं तुम ख़फ़ा तो 
नहीं हो मुझे ये वहम 
सा हो जाता है ; 
मुझे तुम सदा 
चहकती हुई ही 
अच्छी लगती हो ; 
तुम मुझे यूँ ही 
डाँटती डपटती ही 
अच्छी लगती हो ;
कभी मज़ाक में तो 
कभी शरारत में ही 
मगर तुम मुझे बस 
हंसती हुई ही अच्छी 
लगती हो ;
सुनो चुप-चुप सी   
ना रहा करो मुझे 
वहम सा हो जाता है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !