एक मैं और एक तुम !
हर दिन में कुछ पल तो हों
जो सिर्फ तेरे और मेरे हो ;
जिसमे कोई तीसरा ना हो
उस पल में हम दोनों साथ हो ;
उसमे सिर्फ एक दूजे की बात हो
उन बातों को सुनने वाला कोई और ना हो ;
यूँ ही बैठे बैठे एक दूजे की बात
पर दोनों बेतहाशा हंस पड़ते हो ;
हँसते-हँसते एक दूजे की आँखों
से बरबस आसूं निकल पड़ते हो ;
उन आँसुओं को पोछने वाला
वहां कोई और तीसरा ना हो ;
बस मैं और तुम एक दूजे
के बहते आंसू पोंछते हो !
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