यूँ लौट जाती है !
कभी तो तू आकर मेरे ही
पहलु में तड़प उठती है
कभी तू जा कर रेत के
सीने से लिपट जाती है
यूँ लगता है जैसे तुझे
आगोश-ए-यार में
आता ही नहीं करार है
तभी तो तू आती है
मौज़ों की तरह पास
मेरे और चुम कर होंठ
मेरे यूँ लौट जाती है !
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