Monday, 4 November 2019

यूँ लौट जाती है !


यूँ लौट जाती है !
  
कभी तो तू आकर मेरे ही 
पहलु में तड़प उठती है 
कभी तू जा कर रेत के
सीने से लिपट जाती है 
यूँ लगता है जैसे तुझे 
आगोश-ए-यार में 
आता ही नहीं करार है  
तभी तो तू आती है 
मौज़ों की तरह पास 
मेरे और चुम कर होंठ 
मेरे यूँ लौट जाती है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !