Wednesday, 20 November 2019

रात की ये कालिमा !


क्यों रात की ये कालिमा है , 
क्यों किरणों से तपता दिन है ; 

क्यों आँखों से आसमां ओझल है , 
क्यों हवाएँ सूखी और मद्धम है ; 

क्यों ये लम्हें दर-दर बिखरे है ,
क्यों यादों के प्रतिबिंब धुँधले है ;  

क्यों आहें कराहें हो रही है ,
क्यों दिन बीत ही नहीं रहे है ;

क्यों एक नई सुबह की ख़्वाहिश है ,
क्यों अब चुप रहना भी मुश्किल है ;

क्यों अब अकेले चलते रहना भारी है , 
क्यों भटके-भटके से ये पदचिन्ह है ;

क्यों अब सारी तस्वीरें चुभती सी है ,
क्यों सिमट रहा जीवन प्रतिदिन है ; 

क्यों एक सिर्फ तेरे साथ ना होने से 
कितने कुछ पर क्यों लग रहा है !   

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !