प्रीत की रीत !
जब तुम्हारे ह्रदय में
मेरे लिए बेइंतेहा और
बेपनाह प्यार उमड़ आये
और तुम्हारे इन नयनों
से बाहर वो छलक आये
मुझसे अपनी इस पीड़ा
को बयां करने तुम्हारा
ये मन व्याकुल हो जाए
तब तुम एक आवाज़
देकर मुझे बुलाना
कुछ इस तरह तुम
अपनी प्रीत की
रीत निभाना
तन्हा रातों में जब
नींद तुम्हारी उड़ जाए
सुबह की लाली में भी
जब तुम को मेरा ही
अक्स नज़र आये
ठंडी हवा के झोंके भी
जब मेरी खुशबु तुम
तक पहुचाये
तब तुम एक आवाज़
देकर मुझे बुलाना
कुछ इस तरह तुम
अपनी प्रीत की
रीत निभाना !
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