Friday, 1 November 2019

पलकें झपकी नहीं !


पलकें झपकी नहीं !

रात भर सोया नही मैं
सोचता तुमको रहा ;
चांदनी खिड़की पर खड़ी रही 
मैं खिड़की पर बैठा रहा ;
चांदनी से बातें ही बातें हुई
रोशन सितारों को मैं तकाता रहा ;
नींद मेरे पास में थी
पलकें मगर झपकी ही नहीं ;
मुझसे नाराज थे 
चादर, बिस्तर, तकिये मेरे ;
उनको सोना था मगर
मैं बस सोचता तुमको रहा ;
मेरी इन आंखों में उलझे हैं 
ख्वाब कितने तुम्हारे ;
क्या इन्हे जानोगी तुम
इक बार बस तुम पास मेरे 
आकर तो रहो ;
देखना फ़िर मानोगी तुम
रात मुझसे अक्सर पूछा करती है ;  
एक सवाल जुल्फ़ में जो 
उलझती हवा मुझसे कहती है ;
उसे भी मलाल  है
क्यूं रात भर सोता नहीं मैं ;
तुमने कभी जाना ही नहीं 
किस तकलीफ में जी रहा हूँ मैं ;
रात भर सोया नही मैं
सोचता तुमको रहा !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !