Thursday, 31 October 2019

प्रेम !


प्रेम !

हां इन्हीं दहकते 
अंगारों के बीच 
मिलता है ; 
आश्रय प्रेम को 
जैसे इसका अर्थ 
भटकता है ;
निर्जन वनों में
ठीक वैसे ही प्रेम  
भी आता है ; 
और आकर जैसे 
ठहर जाता है ; 
वप प्रेम अद्भुत सा 
हमारी कल्पनाओं 
से भी लम्बा और 
ऊंचा भी है ; 
पर वही प्रेम ढूंढ 
ही लेता है ; 
अपना आश्रय
इन्ही दहकते 
अंगारो के बीच 
ही कंही !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !