प्रेम !
हां इन्हीं दहकते
अंगारों के बीच
मिलता है ;
आश्रय प्रेम को
जैसे इसका अर्थ
भटकता है ;
निर्जन वनों में
ठीक वैसे ही प्रेम
भी आता है ;
और आकर जैसे
ठहर जाता है ;
वप प्रेम अद्भुत सा
हमारी कल्पनाओं
से भी लम्बा और
ऊंचा भी है ;
पर वही प्रेम ढूंढ
ही लेता है ;
अपना आश्रय
इन्ही दहकते
अंगारो के बीच
ही कंही !
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