Thursday, 24 October 2019

मेरा प्रेम !


मेरा प्रेम !

मेरे लिए प्रेम 
नाभि से चलकर  
कंठ तक आकर 
गूंजने वाला "ॐ" है ; 
तुम्हारा प्रेम दस्तावेजों 
में दर्ज तुम्हारे ही अंगूठे 
की छाप सा है ; 
आधी रात का वो पहर 
जो तन की कलाओं का 
पहर होता है ;
तब अक्सर मेरे घर में 
लगे सारे दर्पणों में एक 
तुम्हारी ही तो तस्वीर 
उभर आती है ;
तब जा कर तुम होती 
हो पूर्ण और करती हो 
सारे श्रृंगार धारण ; 
ये जानते हुए की भी 
कि अगले ही पल ये 
सारे श्रृंगार होंगे एक 
सिर्फ मेरे हवाले ;
मेरे लिए प्रेम 
नाभि से चलकर  
कंठ तक आकर 
गूंजने वाला "ॐ" है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !