Friday, 11 October 2019

पाकीज़गी !


कुछ इस कदर भी रखी
पाकीज़गी कायम मैंने ;
जब भी मन हुआ बैचैन 
देखने को तुझको दुर से 
ही देखा तुझको दर्पण में मैंने !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !