चाहतों का गीत !
मुझे बतलाओ तुम
क्या मैंने स्वप्न में भी
तुम्हारे अलावा किसी
ओर को देखा है ;
आज तक मैंने सिर्फ
तुम्हारी चाहतों का ही
तो गीत गया है ;
अब तक मैंने अपनी
प्यास को सुलाकर ही
तो अपना जीवन जिया है ;
अब तक मैंने स्वर्ग से सूंदर
एक संसार बसाने का ही तो
एक सपना देखा है ;
जिसमे एक तुझे ही तो
ईश समझकर पूजा है
उसकी हर एक दिशा को
तेरी झंकार से ही तो
सजाया है ;
अब तक मैंने अपने यौवन
की लहर में एक तुझे ही तो
नहलाया है ;
सिमटती बिखरती एक तुझ
को ही तो अपनी प्रवाह
बनाया है ;
अब एक तुझे ही तो बड़े
मान मनुहार से अपनी
चांदनी में नहलाया है ;
मुझे बतलाओ तुम
क्या मैंने स्वप्न में भी
तुम्हारे अलावा किसी
ओर को देखा है !
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