Saturday, 19 October 2019

चाहतों का गीत !


चाहतों का गीत !

मुझे बतलाओ तुम 
क्या मैंने स्वप्न में भी 
तुम्हारे अलावा किसी 
ओर को देखा है ;
आज तक मैंने सिर्फ 
तुम्हारी चाहतों का ही 
तो गीत गया है ;
अब तक मैंने अपनी 
प्यास को सुलाकर ही 
तो अपना जीवन जिया है ;
अब तक मैंने स्वर्ग से सूंदर 
एक संसार बसाने का ही तो 
एक सपना देखा है ;
जिसमे एक तुझे ही तो 
ईश समझकर पूजा है 
उसकी हर एक दिशा को 
तेरी झंकार से ही तो 
सजाया है ;
अब तक मैंने अपने यौवन 
की लहर में एक तुझे ही तो
नहलाया है ;
सिमटती बिखरती एक तुझ
को ही तो अपनी प्रवाह 
बनाया है ;   
अब एक तुझे ही तो बड़े 
मान मनुहार से अपनी 
चांदनी में नहलाया है ;
मुझे बतलाओ तुम 
क्या मैंने स्वप्न में भी 
तुम्हारे अलावा किसी 
ओर को देखा है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !