मेरी आस !
जन्मों की ये आस
जो मेरे दिल में बसी है,
क्यों ये आस अब तोड़ने
से भी टूटती नहीं है,
रह जाती है ये अधूरी की अधूरी
क्यों ये अब पूरी होती नहीं है,
जैसे लग कर अपने ही
किनारों से बहती है,
एक लहर जो सागर
से मिलने को तरसती है,
वो जो मेरी नजरों में
कोहिनूर सा चमकता है,
वो पास आकर मेरे ताज
में क्यों नहीं जड़ जाता है,
दूर मेरी आँखों से वो जो
एक लौ सा टिमटिमाता है,
पास आकर मेरे इन अंधेरों में,
क्यों इसे रौशन करता नहीं है !
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