Sunday, 27 October 2019

आओ हम दीप जलाएं !


आओ हम दीप जलाएं !

जंहा-जंहा है तम गहराया
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं !

हर ओर है तम छाया
इतने दीप कंहा से लाएं ;
जंहा-जंहा है तम गहराया
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं !

एक भाव के आंगन में
एक आस की दहलीज़ पर ;
एक निज हिय के द्वार पर
एक सत्य के सिंघासन पर !

तुम बनो माटी दीपक की
मैं उसकी बाती बन जाऊँ ;
जंहा-जंहा है तम गहराया
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं !

एक देह के तहखाने में भी
स्वप्निल तारों की छत पर भी ;
एक प्यार की पगडण्डी पर भी
खुले विचारों के मत पर भी !

जले हम-तुम फिर बिन बुझे
तेल बन तिल-तिल जल जाए ;
जंहा-जंहा है तम गहराया
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं !

एक यारों की बैठक में
एक ईमान की राहों पर ;
एक नयी सोच की खिड़की पर
एक तरह तरह की हंसी के चौराहे पर !

दीप की लौ जो कभी सहमे
तुफानो से उसे हम तुम बचाएं ;
जंहा-जंहा है तम गहराया
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं !

बचपन की गलियों में भी
और यादों के मेले में भी ;
अनुभव की तिजोरी में भी
और दौड़ती उम्र के बाड़े में भी !

बाती की भी अपनी सीमा है
चलो उसकी भी उम्र बढ़ाते है ;
बाती को बाती से जोड़ देते है 
जंहा-जंहा है तम गहराया
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं !

आज हार है निश्चित तम की
जग में ये आस जगा आएं ;
सुबह का सूरज जब तक आये
तब तक प्रकाश के प्रहरी बन जाए !

जंहा-जंहा है तम गहराया
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !