Friday, 18 October 2019

करवाचौथ का चाँद !


करवाचौथ का चाँद !

मैंने तो उसी दिन  
रख दिया था चाँद
तुम्हारी हथेली पर   
जिस दिन तुमने
मेरे प्रेम को स्वीकारा था !
मैंने तो उसी दिन  
रख दिते थे कई चाँद
चाँद की चमकती चांदनी 
से तुम्हारे गालों पर
जिस दिन तुमने
मेरे प्रेम को स्वीकारा था !
मैंने तो उसी दिन  
रख दिए थे दो रक्तवर्ण   
चाँद तुम्हारे दोनों होंठों पर 
जिस दिन तुमने
मेरे प्रेम को स्वीकारा था !
करवा चौथ का चाँद तो  
उसी दिन रख दिया था 
तुम्हारी हथेली पर जिस 
दिन सहर्ष ओढ़ ली थी तुमने 
मेरे नाम की लाल चुनड़ी !
फिर तुम ही बताओ तुम  
क्यों देखती हो अपने 
प्रेम के आँगन में खड़ी 
होकर चलनी की ओट से  
उस दूर चाँद को आज भी !
जबकि तुम्हारी मुट्ठी में
तो कब से  कैद है 
तुम्हारा अपना चाँद !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !