करवाचौथ का चाँद !
मैंने तो उसी दिन
रख दिया था चाँद
तुम्हारी हथेली पर
जिस दिन तुमने
मेरे प्रेम को स्वीकारा था !
मैंने तो उसी दिन
रख दिते थे कई चाँद
चाँद की चमकती चांदनी
से तुम्हारे गालों पर
जिस दिन तुमने
मेरे प्रेम को स्वीकारा था !
मैंने तो उसी दिन
रख दिए थे दो रक्तवर्ण
चाँद तुम्हारे दोनों होंठों पर
जिस दिन तुमने
मेरे प्रेम को स्वीकारा था !
करवा चौथ का चाँद तो
उसी दिन रख दिया था
तुम्हारी हथेली पर जिस
दिन सहर्ष ओढ़ ली थी तुमने
मेरे नाम की लाल चुनड़ी !
फिर तुम ही बताओ तुम
क्यों देखती हो अपने
प्रेम के आँगन में खड़ी
होकर चलनी की ओट से
उस दूर चाँद को आज भी !
जबकि तुम्हारी मुट्ठी में
तो कब से कैद है
तुम्हारा अपना चाँद !
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