स्मृतियाँ!
तुम्हारी स्मृतियाँ
सर्दी की एक सुबह
के कोहरे सी;
तुम्हारी स्मृतियाँ
उस हिमालय की
सबसे बर्फीली और
कठोर चट्टान सी;
तुम्हारी स्मृतियाँ
मेरे देह पर गोदी
गयी गोदान सी;
तुम्हारी स्मृतियाँ
उस बून्द की सी
जो सिचित हो जाए
तो तुम्हारा हूबहू
अक्स पा लूँ मैं;
तुम्हारी स्मृतियाँ
उस भभकती आग सी
जिसने बर्षों साँझ ढले
मानव सभ्यता की
भूख मिटाई है !
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