Friday, 11 October 2019

रूह कुंदन !


रूह कुंदन !

चलो सोहबत मोहब्बत 
की कर के देखते है; 
तरुणाई उसके साथ 
बिताकर देखते है;
दिल ने बड़ी तसल्ली 
रख कर भी देख ली; 
चलो दिल को थोड़ा  
और बैचैन कर के 
देखते है;  
जिस्म को सौ बार 
जला कर देखा है; 
वो तो मिटटी का 
मिटटी ही रहता है; 
चलो एक बार इस 
रूह को जला कर 
देखते है; 
सुना है ये जलकर 
कुंदन हो जाती है;
चलो सोहबत मोहब्बत 
की कर के देखते है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !