बस यूँ ही !
कभी रतजगे करता है वो
पूछती हूं...उससे मैं
बंजर हुई नींदों की वजह
कहता है...बस यूं ही...
कभी बे-साख्ता कविता
पढता है वो ..कभी ग़जलें
गाता है वो ... पूछती हूं..
हवाओं पे सज़दे की वजह
कहता है... बस यूं ही...
कभी बस मेरा दीदार किया
जाता है वो ...कभी ख्वाबों में...
कभी तस्वीरों में...पूछती हूं..
खोयी-खोयी खामोशी..
का सबब...फ़िर वही
कहता है वो ..बस यूं ही...
जो वजह है इन सबकी
वजह वो ही पूछे तो उसे
क्या बताया जाये...
उसे कैसे दोषी ठहराया
जाए जो सब जानती हो !
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